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सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

व्योगास्की का सिद्धान्त।VYGOTSKY ka siddhant

व्योगास्की का सिद्धान्त (VYGOTSKY'S THEORY) व्योगास्की सोवियत रूस के समाज मनोवैज्ञानिक थे, जिनका पूरा नाम लेव व्योगास्की था। इन्हें बालक के सामाजिक विकास तथा समायोजन पर अपने विचारों का प्रतिपादन व व्यवहरण किया।  व्योगारकी का सामाजिक विकास का सिद्धान्त बालकों के सामाजिक विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त में व्योगास्की ने बताया कि बालक में हर प्रकार के विकास में उसके समाज का विशेष योगदान होता है। उन्होंने बताया कि समाज के अन्त क्रिया के फलस्वरूप है इसमें प्रकार का विकास होता है। समाज में उसे जिस प्रकार की सुविधा उपलब्ध होती है या समाज बालक से जिस प्रकार का व्यवहार करता है, उसका विकास उसी के प्रतिक्रिया व समायोजन स्वरूप है। यदि समाज में सभी प्रकार की सुविधा उचित व्यवहार उपलब्ध नहीं है, तो इसका उसके (बालक के) व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। जन्म के समय बालक सामाजिक प्राणी नहीं होता। वह सामाजिकता से काफी दूर होता है। वह अत्यधिक स्वार्थी होता है। बालक को केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं (भूख, सुरक्षा आदि) को पूरा करने की ललक होती है तथा दूसरों के हित-चिन्तन की ...

स्किनर का क्रिया प्रसूत अधिगम सिद्धान्त। Skinner ka kriya prasoot adhigam siddhant

स्किनर का क्रिया प्रसूत अधिगम सिद्धान्त (OPERANT CONDITIONING THEORY OF SKINNER) "क्रिया प्रसूत अनुबंधन का सिद्धांत" या "क्रिया-प्रसूत अधिगम सिद्धान्त" "सक्रिय अनुकूलन का सिद्धांत के प्रवर्तक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक बी०एप स्कीनर थे। मनो वैज्ञानिको ने 'अनुबंधन' को दो वर्गों में बांटा है। (1) क्लासिकी अनुबंधन। (2) साधनात्मक अनुबंधन। ‘क्लासिकी अनुबंधन’ से रूसी मनोवैज्ञानिक इवान० पी० पावलव का सम्बन्ध है। जबकि “साधनात्मक अनुबंधन" का सम्बन्ध-थार्नडाइक और वी०एफ स्कीनर है। स्किनर द्वारा प्रतिपादित अधिगम के सिद्धान्त को कार्यात्मक अनुबन्धन (Operant Conditioning) कहते हैं।  प्रोफेसर स्किनर हावर्ड विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर थे। उन्होंने व्यवहार का व्यवस्थित एवं वस्तुनिष्ठ अध्ययन करने के लिये एक यन्त्र विकसित किया तथा अवलोकन की विधि का चयन किया।  स्किनर एक व्यावहारिक मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने चूहे तथा कबूतरों की विभिन्न सहज क्रियाओं पर अनेक प्रयोग किये। अन्त में उन्होंने खाने की क्रिया को अध्ययन का विषय माना क्योंकि यही सबसे अधिक साधारण क्रिया थी और...

पावलव का सम्बद्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त Pavlov ka sambaddh pratikriya ka siddhant

पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया का सिद्धान्त ( I. P. PAVLOV'S CLASSICAL CONDITIONING THEORY) I. P. Pavlov : इनका पूरा नाम इवान पी. पावलव है। सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन रूसी मनोवैज्ञानिक आई. पी. पावलव ने किया था। इस सिद्धान्त को सम्बन्ध प्रत्यावर्तन का सिद्धान्त भी कहते हैं। इस मत के अनुसार-सीखना एक अनुकूलित अनुक्रिया है। बर्नार्ड के शब्दों में- अनुकूलित अनुक्रिया उत्तेजना की पुनरावृत्ति द्वारा व्यवहार का स्वचालन है जिसमें उत्तेजना पहले किसी विशेष अनुक्रिया के साथ लगी रहती है और अंत में वह किसी व्यवहार का कारण बन जाती है जो पहले मात्र रूप से साथ लगी हुई थी।"  यह माना जाता है कि उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करना (Stimulus-Response) मानव की प्रवृत्ति । जब मूल उद्दीपक के साथ एक नवीन उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तथा कुछ समय पश्चात् जब मूल उद्दीपक को हटा दिया जाता है तब नवीन उद्दीपक से भी वही अनुक्रिया होती है जो मूल उद्दीपक से होती है। इस प्रकार अनुक्रिया नये उद्दीपक के साथ अनुकूलित हो जाती है।  यह प्रक्रिया पावलव द्वारा किये गये निम्नलिखित प्रयोग से स्पष्ट हो जाती है ...

थार्नडाइक का प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांतThorndike ka prayas evam truti ka siddhant

अधिगम के प्रमुख सिद्धान्त तथा कक्षा शिक्षण में इनकी व्यवहारिक उपयोगिता थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त (THORNDIKE'S THEORY OF LEARNING)   ई .एल. थार्नडाइक (E. L. Thorndike) ने 1913 में प्रकाशित होने वाली अपनी शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) में सीखने का एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित किया। "उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत" या "सम्बन्धवाद का सिद्धांत" "प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत" (Stimulus Respanse Theory)  उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन एडवर्ड एल. थार्नडाइक ने अपनी पुस्तक "एनीमल इन्टेलीजेंस" और "शिक्षा मनोविज्ञान" (Education Psychology) में किया था। उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त के अनुसार अधिगम की प्रक्रिया के दौरान उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच बंधन (Bonds) अथवा सम्बन्ध (connections) बनते हैं। थार्नडाइक के अनुसार किसी भी कार्य की क्रिया के लिए। उद्दीपक (S) होता है। जिसके कारण अनुक्रिया (R) होती है। जिन्हें उद्दीपन-अनुक्रिया बंधन (S.R. Bonds) कहते है।   इस सिद्धान्त को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, यथा 1. Thor...

अधिगम/सीखना (Learning).अधिगम के नियम थार्नडाइक के सीखने के मुख्य नियम एवं अधिगम में उनका महत्व

  अधिगम/सीखना (Learning) अधिगम या सीखना सातत्य रूप में चलने वाली वह सार्वभौमिक प्राक्रिया है। जो जन्म से प्रारम्भ होती है और मृत्युपर्यन्त तक चलती रहती है।  सीखने की गति में वातावरण के अनुरूप परितर्वन होता रहता है। अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसे न केवल शिक्षा मनोविज्ञान में बल्कि मनोविज्ञान की समस्त शाखाओं में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसलिए " वुडवर्थ " ने कहा है कि- "सीखना विकास की प्रक्रिया है" ।   अधिगम के नियम (LAWS OF LEARNING) अधिगम मनोविज्ञान का प्राण है। अधिगम को यदि मनोविज्ञान से विलग कर दिया जायेगा तो मनोविज्ञान मृतप्राय हो जायेगा। इसका प्रमुख कारण-व्यवहार एवं अस्तित्व अधिगम की जाने हर क्रिया व्यवहार द्वारा संचालित होती है। मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक परीक्षणों ने सीखने के सिद्धान्तों की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  सीखने के सिद्धान्तों को दो प्रमुख वर्गों-  व्यवहारवादी सिद्धान्त (Behaviourist Theories ) तथा   संज्ञानात्मक सिद्धान्त (Cognitive Theories) में विभक्त किया जा सकता है। थॉर्नडाइक ने अधिगम की क्रिया में प्रभ...

UPTET 2021 ऑनलाइन फॉर्म कैसे भरें l UPTET 2021 प्राथमिक I से V और जूनियर VI से VIII पात्रता

परीक्षा नियामक प्राधिकरण उत्तर प्रदेश, प्रयागराज ने उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा 2021 का पूरा कार्यक्रम जारी कर दिया है। इस वर्ष प्राथमिक स्तर कक्षा 1 से 5 और जूनियर स्तर कक्षा 06 से 08 के लिए यूपीटीईटी 2021 पात्रता परीक्षा आवेदन 07 अक्टूबर 2021 से ऑनलाइन होंगे। 25 अक्टूबर 2021 तक। परीक्षा 28 नवंबर 2021 को प्रस्तावित है और परीक्षा का परिणाम 28 दिसंबर को जारी किया जाएगा।  महत्वपूर्ण तिथियाँ :- आवेदन शुरू :                                      07/10/2021 पंजीकरण की अंतिम तिथि :                    25/10/2021 भुगतान परीक्षा शुल्क अंतिम तिथि :          26/10/2021 अंतिम तिथि पूर्ण प्रपत्र :                          27/10/2021 परीक्षा तिथि :                                ...

यूपी टीईटी 2020-2021 की तैयारी कैसे करें.UP TET 2021 की तैयारी किस प्रकार करें?

   यूपी टीईटी 2020-2021 की तैयारी कैसे करें|  UP TET 2020-2021 Preparation Tips  UP TET 2021 की तैयारी किस प्रकार करें? – किस प्रकार करें UP TET 2021 की तैयारी  UPTET Full form - Uttar Pradesh Teacher eligibility test. UPTET एक qualifying exam है। इसको क्लियर करने के बाद आप सुपर टीईटी देकर प्राइमरी/ जूनियर स्कूल के अध्यापक बन सकते है। UPTET का दो पेपर होता है। पेपर I जो प्राइमरी स्कूल के टीचर बनना चाहते है उन्हे पेपर I क्लियर करना पड़ता है। पेपर II जो जूनियर हाईस्कूल के टीचर बनना चाहते है उन्हे पेपर II क्लियर करना पड़ता है। UPTET की तैयारी और उसकी बेहतर सफलता के लिए क्या करें? UPTET की तैयारी शुरू करने से पहले आपको इसका Syllabus और Exam Pattern अच्छे से पता होना चाहिए. इस एग्ज़ाम की बेहतर तैयारी के लिए सबसे पहले आप इसके लेटेस्ट सिलेबस और एग्जाम पैटर्न को अच्छे से समझें. क्या आपकी शिक्षण में रुचि है और आप शिक्षक बनना चाहते हैं? यदि हाँ, तो आप इसके लिए तैयारी अभी से शुरू कर दीजिये। उत्तर प्रदेश के स्कूलों में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में भर्ती...

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS AFFECTING LEARNING PROCESS)

  अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (FACTORS AFFECTING LEARNING PROCESS) अधिगम की प्रक्रिया अनेक कारकों से प्रभावित होती रहती है। अधिगम की क्रिया किसी विशेष प्रतिकारक के प्रभाव से संचालित नहीं होती। उसकी संचालन प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले अनेक कारक होते हैं। किसी ज्ञान तथा क्रिया को सीखने के लिये प्रतिकारकों की उचित व्यवस्था अति आवश्यक होती है। ये प्रतिकारक निम्नवत् हैं। 1. बालक का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health of Child) स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। यह उक्ति काफी महत्वपूर्ण है। शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ व परिपक्व बालक सीखने में रुचि लेते हैं तथा वे शीघ्रता से नवीन तथ्यों को सीख लेते है। इससे विपरीत कमजोर, अस्वस्थ बालक शारीरिक व मानसिक कठिनाई होने के साथ सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बालकों के लिये शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का विशेष प्रयास परिलक्षित होता है। मानसिक रूप से स्वस्थ व परिपक्च बालकों में सीखने की क्षमता तीव्र होती है। बुद्धिमान तथा तीव्र बुद्धि वाले छात्र कठिन बातों को शीघ्रता तथा सरलत...

अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ (EFFECTIVE METHODS OF LEARNING)

               अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ  (EFFECTIVE METHODS OF LEARNING) अधिगम के लिये अनेक प्रकार की प्रभावी विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं जो निम्नवत हैं  1. करके सीखना (Learning by Doing) -  इस विधि में छात्र के द्वारा प्रत्येक कार्य में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया जाता है। बच्चे जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते है। जब बच्चे किसी कार्य को स्वयं करते हैं तो वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते है और उसे पूर्ण करने की कोशिश करते हैं। यदि उसमें वे असफल रहते हैं तो अपनी गलतियों का पता लगाते हैं तथा उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली इसी विधि पर आधारित 'बाल केन्द्रित शिक्षा है। 2. अनुकरण द्वारा सीखना ( Learning by Imitation) -  अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया शैशवावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है। विद्यालय में बच्चे शिक्षक द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का अनुकरण करके सीखते है। इस विधि में शिक्षक छात्र के लिए आदर्श स्वरूप होता है। मनोवैज्ञानिक हैगार्ट महोदय के अनुक...

अधिगम का अर्थ व परिभाषाएँ

        अधिगम का अर्थ व परिभाषाएँ (MEANING AND DEFINITIONS OF LEARNING) 'सीखना' किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। हम अपने हाथ में आम लिए चले जा रहे हैं। कहीं से एक भूखे बन्दर की उस पर नजर पड़ती है। वह आम को हमारे हाथ से छीन कर ले जाता है। यह भूखे होने की स्थिति में आम के प्रति बन्दर की प्रतिक्रिया है। पर यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक (Instinctive) है, सीखी हुई नहीं। इसके विपरीत, बालक हमारे हाथ में आम देखता है। वह उसे छीनता नहीं है, वरन् हाथ फैलाकर माँगता है। आम के प्रति बालक की यह प्रतिक्रिया स्वाभाविक नहीं, सीखी हुई है। जन्म के कुछ समय बाद से ही उसे अपने वातावरण में कुछ-न-कुछ सीखने को मिल जाता है। पहली बार आग को देखकर वह उसे छू लेता है और जल जाता है। फलस्वरूप, उसे एक नया अनुभव होता है। अतः जब वह आग को फिर देखता है, तब उसके प्रति उसकी प्रतिक्रिया भिन्न होती है। अनुभव ने उसे आग को न छूना सिखा दिया है। अतः वह आग से दूर रहता है। इस प्रकार, " सीखना- अनुभव द्वारा व्यवहार में परिवर्तन है। हम 'सीखने' के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ परिभाषाएँ दे रहे हैं, ...

वातावरण (ENVIRONMENT)का अर्थ एवं परिभाषायें

          वातावरण (ENVIRONMENT)   वातावरण का अर्थ एवं परिभाषायें  वातावरण एक व्यापक शब्द है। इसके अन्तर्गत वे सभ भौतिक तथा अभौतिक वस्तुये शामिल रहती है जिनका प्रभाव व्यक्ति के सर्वांगीण विकास पर पड़ता है। वातावरण को पर्यावरण भी कहा जाता है। पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है। परि + आवरण। 'परि' का अर्थ है चारों ओर, और आवरण का अर्थ है ढकना। अतः वे सभी वस्तुयें हमें चारों ओर से घेरे हुये हैं पर्यावरण के अन्तर्गत आती है। पर्यावरण के प्रभाव से कोई व्यक्ति अछूता नहीं रह सकता है अतः व्यक्ति को जैसा वातावरण मिलता है वैसा ही उसका विकास होता है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वाटसन(Watson) ने कहा है मुझे नवजात शिशु दे दो, मैं उसे जो चाहूँ बना सकता हूँ। वातावरण के अर्थ को स्पष्ट करने के लिये विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपनी परिभाषायें दी है। प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित है  बोरिंग, लंगफील्ड एवं वील्ड के अनुसार  "व्यक्ति के वातावरण के अन्तर्गत उन सभी उत्तेजनाओ का योग आता है जिन्हें वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है।" "A person's environment consists of the sum t...

बाल विकास के आधार एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक

बाल विकास के आधार एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक [Bases of Child Development and Their Influence Factors] बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक  (FACTORS AFFECTING CHILD DEVELOPMENT) प्राणी के गर्भ में आने से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता प्राप्त होने की स्थिति मानव विकास है। मानव का विकास अनेक कारकों द्वारा होता है। इनमें दो प्रमुख कारक हैं-जैविक एवं सामाजिक। जैविक विकास क दायित्व माता-पिता पर होता है और सामाजिक विकास का वातावरण पर। बालक लगभग 9 माह अर्थात 280 दिन तक माँ के गर्भ में रहता है और तब से ही उसके विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। बालक के विकास पर वंशानुक्रम के अतिरिक्त वातावरण का भी प्रभाव पड़ने लगता है। जन्म से सम्बन्धित विकास को वंशानुक्रम तथा समाज से सम्बन्धित विकास को वातावरण कहते हैं। इसे प्रकृति (Nature) तथा पोषण (Nurture) भी कहा जाता है।   वुडवर्थ का कथन है कि एक पौधे का वंशक्रम उसके बीज में निहित है और उसके पोषण का दायित्व उसके वातावरण पर है। बाल विकास को प्रभावित करने वाले दो कारक है 1. वंशानुक्रम 2. वातावरण वंशानुक्रम का अर्थ (MEANING OF HEREDITY) कोई भी बालक...

बाल विकास का अर्थ और परिभाषा (Meaning and definition of child development)

बाल विकास का अर्थ और परिभाषा (Meaning and definition of child development) : बाल विकास के अंतर्गत ही यूपीटेट और सीटेट में काफी प्रश्न पूछे जाते है। तो यह जानना आवश्यक हो जाता हैं। कि बाल विकास क्या हैं? तो आज हम आपको बाल विकास का अर्थ और परिभाषा (Meaning an d definition of child development) की जानकारी प्रदान करेंगे।  बाल विकास का अर्थ (MEANING OF CHILD DEVELOPMENT) बाल विकास का अर्थ बालक के विकास में होने वाले क्रमिक परिवर्तन को बाल विकास कहते है । यह दो शब्दों से मिलकर बना है-    बाल + विकास 'बाल विकास' से तात्पर्य बालकों के सर्वांगीण विकास से है। बाल विकास का अध्ययन करने के लिये 'विकासात्मक मनोविज्ञान' की एक अलग शाखा बनाई गयी जो बालकों के व्यवहारों का अध्ययन गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त तक करती है। परन्तु वर्तमान समय में इसे 'बाल विकास' (Child Development) में परिवर्तित कर दिया गया क्योंकि बाल मनोविज्ञान में केवल बालकों के व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है जबकि बाल विकास के अन्तर्गत उन सभी तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जो बालकों के व्यवहारों को एक निश्चित ...

शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था से संबंधित अति महत्वपूर्ण प्रश्न

शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था से संबंधित  50 अति महत्वपूर्ण प्रश्न ( Part - 2 ) बाल विकास के अंतर्गत ही यूपीटेट और सीटेट में काफी प्रश्न पूछे जाते है। तो आज हम आपको  शैशवावस्था , बाल्यावस्था , किशोरावस्था से संबंधित अति महत्वपूर्ण प्रश्न बताएंगे। 1. किशोरावस्था का समय होता है। - 2 से 18 वर्ष तक   2. किशोरावस्था बड़े संघर्ष तनाव तूफान तथा विरोध की अवस्था है यह किसका कथन है  - स्टेनले हॉल 3. किशोरावस्था अपराध प्रवृति के विकास का नाजुक समय होता है यह कथन है  - वैलेंटाइन का 4. लड़को में ग्रंथि पाई जाती है  - ओडिपस ग्रंथि  5. विषमलिंगीय भावना का विकास किस अवस्था में होता है -किशोरावस्था  6. किशोरावस्था में जो भी विकास होते हैं वे एक दम छलांग मारकर होते हैं यह कथन किसका है - स्टैंले हॉल 7. नवजात शिशु में हड्डियों होती है  - 270 8. निरुद्देश्य भ्रमण की प्रवृत्ति होती है  - बाल्यवस्था में 9. सुस्ती की अवस्था किसे कहते हैं - बाल्यवस्था 10. मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने स्वप्रेम की भावना' नार्सिज्म किस अवस्था के लिए कहा है  - शैशवावस्थ...