अधिगम की प्रभावशाली विधियाँ
(EFFECTIVE METHODS OF LEARNING)
अधिगम के लिये अनेक प्रकार की प्रभावी विधियाँ प्रयोग में लायी जाती हैं जो निम्नवत हैं
1. करके सीखना (Learning by Doing) - इस विधि में छात्र के द्वारा प्रत्येक कार्य में प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया जाता है। बच्चे जिस कार्य को स्वयं करते हैं, उसे वे जल्दी सीखते है। जब बच्चे किसी कार्य को स्वयं करते हैं तो वे उसके उद्देश्य का निर्माण करते हैं, उसको करने की योजना बनाते है और उसे पूर्ण करने की कोशिश करते हैं। यदि उसमें वे असफल रहते हैं तो अपनी गलतियों का पता लगाते हैं तथा उनमें सुधार करने का प्रयत्न करते हैं। आज की शिक्षा प्रणाली इसी विधि पर आधारित 'बाल केन्द्रित शिक्षा है।
2. अनुकरण द्वारा सीखना ( Learning by Imitation) - अनुकरण द्वारा सीखने की प्रक्रिया शैशवावस्था से ही प्रारम्भ हो जाती है। विद्यालय में बच्चे शिक्षक द्वारा की जाने वाली क्रियाओं का अनुकरण करके सीखते है। इस विधि में शिक्षक छात्र के लिए आदर्श स्वरूप होता है। मनोवैज्ञानिक हैगार्ट महोदय के अनुकरण द्वारा सीखने के सिद्धान्त से भी यह स्पष्ट होता है कि अधिगम की प्रक्रिया अनुकरण के माध्यम से सरल होती है।
3. परीक्षण करके सीखना (Learning by Experimentation) - इसके अन्तर्गत छात्र अपनी आवश्यकता के अनुरूप सामग्री का परीक्षण करते हैं तथा ज्ञान प्राप्त करते हैं। जैसे-बच्चे किताब में गिनती को पढ़ते हैं तो प्रथम दृष्टि में उनका कोई महत्त्वपूर्ण स्थान नहीं होता, परन्तु व्यावहारिक जगत में जब बच्चा स्वयं इसका प्रयोग करता है, देखता है, तो अधिगम स्थायी रूप ले लेता है। इस विधि को विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन एवं नैतिक शिक्षा आदि में प्रयोग किया जाता है। इस विधि के माध्यम से बच्चों में आत्मनिर्भरता का विकास होता है क्योंकि इस परीक्षण में वे स्वयं प्रयास करते हैं।
4. निरीक्षण करके सीखना (Learning by Observation) - बच्चे जिस वस्तु का निरीक्षण करते. हैं, उसके बारे में वे जल्दी और स्थायी रूप से सीख जाते हैं। इसका कारण है कि निरीक्षण करते समय वे उस वस्तु को छूते हैं, या प्रयोग करते हैं, या आपस में उसके बारे में चर्चा करते हैं. इस प्रकार वे अपने एक से अधिक इन्द्रियों का प्रयोग करते हैं। फलस्वरूप उनके मन-मस्तिष्क पर उस वस्तु का स्पष्ट चित्र अंकित हो जाता है। निरीक्षण पद्धति की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि अध्यापक बच्चों को जिस स्थान पर ले जाये उसे वह पूर्व में ही देख लें तथा उसके बारे में योजना बना ले। इस विधि से सीखने में छात्र की जिज्ञासा एवं उत्सुकता बनी रहती है। सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत भूगोल शिक्षण में इस विधि का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिये ताकि बच्चे उसे सहजता से सीख सके।
5. सामूहिक विधियों द्वारा सीखना (Learning by Group Method) सामूहिक विधियों द्वारा सीखना अधिक सहायक एवं उपयोगी होता है। इस सम्बन्ध में कोलसनिक का मत है कि बालक को प्रेरणा प्रदान करने, उसे शैक्षिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता देने, उनके मानसिक स्वास्थ्य को उत्तम बनाने, उसके व्यवहार में सुधार करने और उसमें आत्मनिर्भरता तथा सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिये सामूहिक विधियाँ अधिक प्रभावशाली होती है। मुख्य सामूहिक विधियों निम्नलिखित हैं---
1. वाद-विवाद
2. समूह चर्चा
6. सम्मेलन व विचार गोष्ठी विधि (Conference and Seminar Method) - इस विधि में किसी विशेष विषय पर छात्र/छात्राओं द्वारा विचार-विमर्श, वाद-विवाद एक निश्चित समय में करना होता है।
इसमें ऐसे प्रकरण पर विचार किया जाता है जिसमें सभी सदस्यों की रुचि होती है। इसके द्वारा लोगों में सामाजिक एवं भावात्मक गुणों का विकास होता है। इसके द्वारा दूसरों के विरोधी विचारों का सम्मान एवं सहनशीलता की भावना विकसित होती है।
7. प्रोजेक्ट विधि (योजना विधि) (Project Method)- इसमें प्रत्येक छात्र अपनी व्यक्तिगत रुचि, ज्ञान और क्षमता के अनुसार स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं, जिससे सीखना सरल हो जाता है। सामूहिक रूप से कार्य करने के कारण उनमें स्पर्धा, सहयोग और सहानुभूति का भी विकास होता है। इसमें शिक्षक मार्गदर्शक का कार्य करते हैं तथा वह बच्चों को समूहों में बाँट देते हैं। प्रत्येक समूह अपनी इच्छानुसार कोई भी प्रोजेक्ट लेने को स्वतन्त्र होता है। यहाँ शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिये कि सम्बन्धित कार्य छात्रों के स्तरानुकूल हो तथा वे स्वयं बच्चों का मार्गदर्शन करता रहे, प्रोजेक्ट से सम्बन्धित आवश्यक निर्देश भी देना चाहिये ताकि कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न हो सके। इस विधि से अर्जित ज्ञान स्थायी होता है तथा यह रटने की प्रवृत्ति को भी कम करता है। यह विधि 'बाल केन्द्रित है। बच्चों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है।
8. समूह अधिगम (Group Learning) - इस अधिगम के अन्तर्गत बालक अपने सभी साथियों के साथ खेल में भाग लेता है और उसके दौरान अनेक तथ्यों को सीखता है। उपर्युक्त सीखने की विधियाँ बालकों में एकाकी न होकर बल्कि संयुक्त रूप से अधिकांशतः पायी जाती हैं। इनमें से केवल एक विधि को अन्य से श्रेयस्कर कहना समीचीन नहीं है। पाठ्य सामग्री, बालक की शारीरिक व मानसिक स्थिति तक।
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