बाल विकास के आधार एवं उनको प्रभावित करने वाले कारक
[Bases of Child Development and Their Influence Factors]
बाल विकास को प्रभावित करने वाले कारक
(FACTORS AFFECTING CHILD DEVELOPMENT)
प्राणी के गर्भ में आने से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता प्राप्त होने की स्थिति मानव विकास है। मानव का विकास अनेक कारकों द्वारा होता है। इनमें दो प्रमुख कारक हैं-जैविक एवं सामाजिक। जैविक विकास क दायित्व माता-पिता पर होता है और सामाजिक विकास का वातावरण पर। बालक लगभग 9 माह अर्थात 280 दिन तक माँ के गर्भ में रहता है और तब से ही उसके विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। बालक के विकास पर वंशानुक्रम के अतिरिक्त वातावरण का भी प्रभाव पड़ने लगता है। जन्म से सम्बन्धित विकास को वंशानुक्रम तथा समाज से सम्बन्धित विकास को वातावरण कहते हैं। इसे प्रकृति (Nature) तथा पोषण (Nurture) भी कहा जाता है।
वुडवर्थ का कथन है कि एक पौधे का वंशक्रम उसके बीज में निहित है और उसके पोषण का दायित्व उसके वातावरण पर है।
बाल विकास को प्रभावित करने वाले दो कारक है
1. वंशानुक्रम
2. वातावरण
वंशानुक्रम का अर्थ (MEANING OF HEREDITY)
कोई भी बालक अपने माता-पिता तथा अन्य पूर्वजों के जो विभिन्न शारीरिक और मानसिक गुण गर्भाधान के समय प्राप्त करता है वह इसके वंशानुगत गुण (Heredity traits) कहलाते हैं। अतः जन्म से पूर्व प्राप्त होने वाले सभी गुण वंशानुगत होते हैं इसलिए वंशानुक्रम को व्यक्तित्व के जन्मजात गुणों का समूह' कहा जाता है। किन्तु जन्म के बाद जो परिस्थितियाँ इन शारीरिक और मानसिक गुणों के विकास को प्रभावित करती है वे वातावरण सम्बन्धी होती है। वंशानुक्रम प्रक्रिया के कारण ही मानव से केवल मानव शिशु ही पैदा होता है। इसी शक्ति के कारण पशु से पशु पक्षी से पक्षी और वनस्पति से वनस्पति का प्रादुर्भाव होता है। अतः आनुवंशिकता जन्मजात शक्ति है जो प्राणी के रंगरूप, आकृति, यौन, बुद्धि तथा विभिन्न शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करती है।
वंशानुक्रम की परिभाषायें (Definitions of Heredity)
आनुवंशिकता के अर्थ तथा महत्व को समझने के लिये विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अपनी परिभाषायें दी हैं। कुछ प्रमुख परिभाषायें अग्रलिखित हैं
वुडवर्थ के अनुसार - शानुक्रम उन सभी कारकों को सम्मिलित करता है जो व्यक्ति के जीवन प्रारम्भ करने के समय से ही उपस्थित होते हैं। जन्म के समय नहीं अपितु गर्भाधान के समय अर्थात् जन्म से नौ माह पूर्व ही उपस्थित होते हैं।
"Heredity covers all the factors that were present in the individual when he began life, not at birth but at the time of conception about nine months before birth" -Woodworth
जेम्स ड्रेवर के अनुसार - वंशानुक्रम से अभिप्राय माता और पिता के शारीरिक और मानसिक गुणों का संतानों में हस्तान्तरण है।"
"Heredity is the transmission of physical and mental characteristics from parents to offsprings."
-James Draver
बी. एन. झा के अनुसार - आनुवंशिकता व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओं का पूर्ण योग है।"
"Heredity is the total sum of inborn individual traits."
-B. N. Jha
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं से वंशानुक्रम के सम्बन्ध के निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं
1. वंशानुक्रम जन्मजात शक्ति है।
2. वंशानुक्रम विभिन्न शारीरिक और मानसिक गुणों का समूह है जो जन्मजात होते हैं।
3. वंशानुक्रम गुण प्रत्येक बालक जन्म के समय ही प्राप्त करता है। जन्म के बाद नहीं।
4. वंशानुक्रम के द्वारा ही मानव से मानव शिशु पैदा होता है।
5. वंशानुक्रम का मूल आधार गर्भाधान है।
6. वंशानुक्रम व्यक्ति के रंग, रूप, आकृति, यौन, बुद्धि तथा शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करता है।
वंशानुक्रम की प्रक्रिया (PROCESS OF HEREDITY)
पुरुष और स्त्री के प्रत्येक कोष में 23-23 'गुणसूत्र' (Chromosomes) होते हैं। इस प्रकार, 'संयुक्त कोष' में 'गुणसूत्रों' के 23 जोड़े होते हैं। 'गुणसूत्रों' के सम्बन्ध में मन (Munn) ने लिखा है-"हमारी सब असंख्य परम्परागत विशेषताएँ इन 46 गुणसूत्रों में निहित रहती हैं। ये विशेषताएँ गुणसूत्रों में विद्यमान पित्रयैकों (Genes) में होती हैं।"
सोरेनसन (Sorenson) का मत है - पित्रयैक, बच्चों की प्रमुख विशेषताओं और गुणों को निर्धारित करते हैं। पित्रयैकों के सम्मिलन के परिणाम को ही हम वंशानुक्रम कहते हैं।"
नोबुल पुरस्कार विजेता डा. हरगोविन्द खुराना (Hargobind Khurana) ने अपने अनुसंधान के आधार पर घोषणा की है कि निकट भविष्य में एक प्रकार के पित्रयैक (Gene) को दूसरे प्रकार के पित्रयैक से स्थानापन्न करना, औषधि-शास्त्र के क्षेत्र में अत्यन्त सामान्य कार्य हो जायगा। उनका विश्वास है कि इस कार्य द्वारा भावी सन्तान की मधुमेह के समान दुःसाध्य रोगों से रक्षा की जा सकेगी। किन्तु अभी तक इस बात की खोज नहीं हो पाई है कि इस कार्य द्वारा युद्धप्रिय व्यक्तियों को शान्तिप्रिय बनाया जा सकेगा या नहीं।
वंशानुक्रम के नियम (सिद्धान्त)
[LAWS (PRINCIPLES) OF HEREDITY]
वंशक्रम (Heredity) मनोवैज्ञानिकों तथा जीववैज्ञानिकों (Biologists) के लिए अत्यन्त रोचक तथ रहस्यमय विषय है। वंशक्रम जिन नियमों तथा सिद्धान्तों पर आधारित है, यह विषय भी अध्ययन के नये आयाम प्रस्तुत करता है। वंशक्रम के ये नियम सर्वाधिक प्रचलित हैं
1. बीजकोष की निरन्तरता का नियम (Law of Continuity of Germ Plasm)-
इस नियम के अनुसार, बालक को जन्म देने वाला बीजकोष कभी नष्ट नहीं होता। इस नियम के प्रतिपादक वीजमैन (Weismann) का कथन है- बीजकोष का कार्य केवल उत्पादक कोषों (Germ Cells) का निर्माण करना है, जो बीजकोष बालक को अपने माता-पिता से मिलता है, उसे वह अगली पीढ़ी को हस्तान्तरित कर देता है। इस प्रकार, बीजकोष पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता है।"
2. समानता का नियम (Law of Resemblance)-इस नियम के अनुसार, जैसे माता-पिता होते हैं, वैसी ही उनकी सन्तान होती है (Like tends of beget like)। इस नियम के अर्थ का स्पष्टीकरण करते हुए सोरेनसन (Sorenson) ने लिखा है- बुद्धिमान माता-पिता के बच्चे बुद्धिमान, साधारण माता-पिता के बच्चे साधारण और मन्द-बुद्धि माता-पिता के बच्चे मन्द-बुद्धि होते हैं। इसी प्रकार, शारीरिक रचना की दृष्टि से भी बच्चे माता-पिता के समान होते हैं।
३. विभिन्नता का नियम (Law of Resemblance)
इस नियम के अनुसार, बालक अपने माता-पिता के बिल्कुल समान न होकर उनसे कुछ भिन्न होते हैं। इसी प्रकार, एक ही माता-पिता के बालक एक-दूसरे के समान होते हुए भी बुद्धि, रंग और स्वभाव में एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। कभी-कभी उनमें पर्याप्त शारीरिक और मानसिक विभिन्नता पाई जाती है।
4. प्रत्यागमन का नियम (Law of Regression)- इस नियम के अनुसार, बालक में अपने माता-पिता के विपरीत गुण पाये जाते हैं। इस नियम का अर्थ स्पष्ट करते हुए सोरेनसन (Sorenson) ने लिखा है—बहुत प्रतिभाशाली माता-पिता के बच्चों में कम प्रतिभा होने की प्रवृत्ति और बहुत निम्नकोटि के माता-पिता के बच्चों में कम निम्नकोटि होने की प्रवृत्ति ही प्रत्यागमन है।
5. अर्जित गुणों के संक्रमण का नियम (Inheritance of Acquired Traits) - इस नियम के अनुसार, माता-पिता द्वारा अपने जीवन काल में अर्जित किये जाने वाले गुण उनकी सन्तान को प्राप्त नहीं होते हैं। इस नियम को अस्वीकार करते हुए विकासवादी लेमार्क (Lemarck) ने लिखा है-"व्यक्तियों द्वारा अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया जाता है, वह उनके द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले व्यक्तियों को संक्रमित किया जाता है। इसका उदाहरण देते हुए लेमार्क ने कहा है कि जिराफ पशु की गर्दन पहले बहुत-कुछ घोड़े के समान थी. पर कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण वह लम्बी हो गई और कालान्तर में उसकी लम्बी गर्दन का गुण अगली पीढ़ी में संक्रमित होने लगा। लेमार्क के इस कथन की पुष्टि मैक्डूगल (McDougall) और पवलव (Pavlov) ने चूहों पर एवं हैरीसन (Harrison) ने पतगों पर परीक्षण करके की है।
6. मेंडल का नियम (Law of Mendel)- इस नियम के अनुसार, वर्णसंकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती हैं। इस नियम को जेकोस्लोवेकिया के मेंडल (Mendel) नामक पादरी ने प्रतिपादित किया था। उसने अपने गिरजे के बगीचे में बड़ी और छोटी मटरें बराबर संख्या में मिलाकर बोयी। उगने वाली मटरों में सब वर्णसंकर जाति की थी। मैंडल ने इन वर्णसंकर मटरों को फिर बोया और इस प्रकार उसने उगने वाली मटरों को कई बार बोया। अन्त में उसे ऐसी मटरें मिली, जो वर्णसंकर होने के बजाय शुद्ध थीं।।
मटरों के समान मैडल ने चूहों पर भी प्रयोग किया। उसने सफेद और काले चूहों को साथ-साथ रखा। इनसे जो चूहे उत्पन्न हुए, वे काले थे। फिर उसने इन वर्णसंकर काले चूहों को एक साथ रखा। इनसे उत्पन्न होने वाले चूहे, काले और सफेद दोनों रंगों के थे।
अपने प्रयासों के आधार पर मैडल ने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि वर्णसकर प्राणी या वस्तुएँ अपने मौलिक या सामान्य रूप की ओर अग्रसर होती है। यही सिद्धान्त "मेंडलवाद" (Mendelism)" के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी व्याख्या करते हुए बी. एन. झा ने लिखा है- जब वर्णसकर अपने स्वयं के पितृ या मातृ-उत्पादक कोषों का निर्माण करते है, तब वे प्रमुख गुणों से युक्त माता-पिता के समान शुद्ध प्रकारों को जन्म देते हैं।"
"When the hybrids come to form their own sperms (male) or egg cells (Female), they produce pure parental types with the dominant characters," -B. N. Jha
ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregar John Mendal) ने जो प्रयोग किये, इन प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों से वंशक्रम तथा वातावरण के प्रभावों के अध्ययन में अत्यधिक योग दिया। चाहे छोटी-बड़ी मटर मिलाकर बोने का प्रयोग हो अथवा काले-सफेद चूहों को एक साथ रखकर उनके संतति व्यापार का प्रयोग हो, कुछ निष्कर्ष ऐसे निकाले जिससे वंशक्रम की शुद्धता का पता चलता है। इससे उसने प्रत्यागमन (Regression) के सिद्धान्त का निरूपण किया। उसका यह सिद्धान्त इस प्रकार है-अधिक जाग्रत या प्रबल गुण, सुप्त गुण को निष्क्रिय कर देता है। सुप्तावस्था में रहने वाले व्यक्त गुण जब प्रकट होकर मुख्य गुण का रूप धारण कर लेते हैं तो यह स्थिति प्रत्यागमन का रूप धारण कर लेती है। उदाहरणार्थ-काले माता-पिता के यहाँ गोरे बालक का जन्म लेना।
बाल विकास पर वंशानुक्रम का प्रभाव
(INFLUENCE OF HEREDITY ON CHILD DEVELOPMENT)
बच्चे के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर वंशानुक्रम प्रभाव पड़ता है। मनोवैज्ञानिकों ने वशानुक्रम के प्रभाव को रोकने के लिए विभिन्न प्रयोग किये और यह सिद्ध किया कि बालक का विकास वंशानुक्रम से प्रभावित होता है। वशानुक्रम निम्नलिखित प्रकार से बाल विकास को प्रभावित करता है
1. तन्त्रिका तन्त्र की बनावट (Structure of Nervous System)-तन्त्रका तन्त्र में प्राणी की वृद्धि, सीखना, आदतें, विचार और आकांक्षाएँ आदि केन्द्रित रहते हैं। तन्त्रिका तन्त्र बालक में वंशानुक्रम से ही प्राप्त होता है। इससे ही ज्ञानेन्द्रियाँ, पेशियाँ तथा ग्रन्थियाँ आदि प्रभावित होती रहती हैं। छात्र की प्रतिक्रियाएँ तन्त्रिका तन्त्र पर निर्भर करती हैं। अतः हम बालक के तन्त्रिका तन्त्र के विकास को सामान्य पिछड़ा एवं असामान्य आदि भागों में विभाजित कर सकते हैं। बालक का भविष्य तन्त्रिका तन्त्र की बनावट पर भी निर्भर करता है।
2. बुद्धि पर प्रभाव (Effect on Intelligence)-मनोवैज्ञानिकों ने अपने प्रयोगों में यह स्पष्ट कर दिया है कि वशानुक्रम के द्वारा ही छात्र में बुद्धि आती है। अतः बुद्धि को जन्मजात माना जाता है। 'स्पियरमैन ने बुद्धि में विशिष्ट एवं सामान्य तत्वों को वंशानुक्रम की देन माना है। बालक की बुद्धि वंशानुक्रम से ही निश्चित होती है।
3. मूल प्रवृत्तियों पर प्रभाव (Effect on Instincts)-मूल प्रवृत्ति बालक के व्यवहार को शक्ति प्रदान करती है। इसको हम देख नहीं सकते बल्कि व्यक्ति के व्यवहार को देखकर पता लगाते हैं कि कौन-सी मूल प्रवृत्ति जागृत होकर व्यवहार का संचालन कर रही है ? मैक्डूगल महोदय ने इनका पता लगाया था और इनको जानने के लिए उन्होंने प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के साथ एक संवेग को भी जोड़ दिया, जो मूल प्रवृत्ति का प्रतीक होता है। संवेग को देखकर मूल प्रवृत्ति का पता लगाया जाता है। आपने यह भी स्पष्ट किया है कि ये भी वंशानुक्रम से ही प्राप्त होते हैं। मूल प्रवृत्तियाँ एवं सहयोगी संवेग निम्नवत् हैं
मूल प्रवृत्ति संवेग
1. पलायन भय
2. निवृत्ति घृणा
3. जिज्ञासा आश्चर्य
4. युयुत्सा क्रोध
5. आत्मगौरव सकारात्मक आत्मानुभूति
4. स्वभाव का प्रभाव (Effect of Nature)-बालक के स्वभाव का प्रकटीकरण उनके माता-पिता के स्वभाव के अनुकूल होता है। यदि बालक के माता-पिता मीठा बोलते हैं तो उसका स्वभाव भी मीठा बोलने वाला होगा। इसी प्रकार से क्रोधी एवं निर्दयी स्वभाव वाले माता-पिता के बालक भी निर्दयी एवं क्रोधी होते हैं। शैल्डन महोदय ने मानव स्वभाव का अध्ययन कर उसे तीन भागों में विभाजित किया है
(a) विसेरोटोनिया (Viscerotonia)-इस स्वभाव के व्यक्ति समाजप्रिय, आरामपसन्द, हँसमुख और स्वादिष्ट भोजन में रुचि रखने वाले होते हैं।
(b) सोमेटोटोनिया (Somatotonia)
इस प्रकार के स्वभाव के व्यक्ति महत्वाकांक्षी, क्रोधी,निर्दयी, सम्मानप्रिय और दृढ़ प्रतिज्ञ आदि विशेषताओं वाले होते हैं।
(c) सेरेब्रोटोनिया (Cerebrotonia)-इस स्वभाव के व्यक्ति चिन्तनशील, एकान्तप्रिय, नियन्त्रण पसन्द एवं विचारशील होते हैं।
5. शारीरिक गठन (Physical Structure) - बालक का शारीरिक गठन एवं शरीर की बनावट उसके वंशजों पर निर्भर करती है। कार्ल पियरसन ने बताया है कि माता-पिता की लम्बाई, रंग एवं स्वास्थ्य आदि का प्रभाव बालकों पर पड़ता है। 'क्रेश्मर' महोदय ने एक अध्ययन कर शारीरिक गठन के आधार पर सम्पूर्ण मानव जाति को तीन भागों में बाँटा है
(a) पिकनिक (Picnic)-इस प्रकार का व्यक्ति शरीर से मोटा, कद में छोटा, गोल-मटोल और अधिक चर्बीयुक्त होता है। उसका सीना चौड़ा लेकिन दबा हुआ तथा पेट निकला हुआ होता है।
(b) ऐथलैटिक (Athletic)-इस प्रकार का व्यक्ति शारीरिक क्षमताओं के आधार से युक्त होता है
जैसे-सिपाही या खिलाड़ी।
(c) ऐस्थेनिक (Asthenic)-इस प्रकार का व्यक्ति दुबला-पतला और शक्तिहीन शरीर का होता है तथा यह संकोची स्वभाव का होता है। ऐसे लोग किसी भी प्रकार से अन्य लोगों को प्रभावित नहीं कर पाते हैं।
6. व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव (Effect on Vocational Ability)- बालकों में माता-पिता की व्यावसायिक योग्यता की कुशलता भी हस्तान्तरित होती हैं। 'कैटेल ने 885 अमेरिकन वैज्ञानिकों के परिवारों का अध्ययन कर पाया कि उनमें से 2/5 व्यवसायी वर्ग, 1/2 भाग उत्पादक वर्ग और केवल 1/4 भाग कृषि वर्ग के थे। अतः स्पष्ट है कि व्यावसायिक कुशलता वंश पर आधारित होती है।
7. सामाजिक स्थिति पर प्रभाव (Effect on Social Status)- जो लोग वंश से अच्छा चरित्र, गुण या सामाजिक स्थिति सम्बन्धी विशेषताओं को लेकर उत्पन्न होते हैं, वे ही सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। विनसिप महोदय का मत है कि गुणवान एवं प्रतिष्ठित माता-पिता की सन्तान ही प्रतिष्ठा प्राप्त करती है।' जैसे 'रिचर्ड एडवर्ड नामक परिवार के रिचर्ड एक प्रतिष्ठित नागरिक थे। इनकी सन्तानें विधानसभा के सदस्य एवं महाविद्यालयों के अध्यक्ष आदि प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हुए। अतः स्पष्ट है कि सामाजिक स्थिति वंशानुक्रमणीय होती है।
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