अधिगम के प्रमुख सिद्धान्त तथा कक्षा शिक्षण में इनकी व्यवहारिक उपयोगिता
थार्नडाइक का सीखने का सिद्धान्त (THORNDIKE'S THEORY OF LEARNING)
ई .एल. थार्नडाइक (E. L. Thorndike) ने 1913 में प्रकाशित होने वाली अपनी शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology) में सीखने का एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
"उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धांत" या "सम्बन्धवाद का सिद्धांत" "प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत" (Stimulus Respanse Theory)
उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त का प्रतिपादन एडवर्ड एल. थार्नडाइक ने अपनी पुस्तक "एनीमल इन्टेलीजेंस" और "शिक्षा मनोविज्ञान" (Education Psychology) में किया था। उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त के अनुसार अधिगम की प्रक्रिया के दौरान उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच बंधन (Bonds) अथवा सम्बन्ध (connections) बनते हैं। थार्नडाइक के अनुसार किसी भी कार्य की क्रिया के लिए। उद्दीपक (S) होता है। जिसके कारण अनुक्रिया (R) होती है। जिन्हें उद्दीपन-अनुक्रिया बंधन (S.R. Bonds) कहते है।
इस सिद्धान्त को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, यथा
1. Thorndike's Connectionism (थार्नडाइक का सम्बन्धवाद) ।
2. Connectionist Theory (सम्बन्धवाद का सिद्धान्त)।
3. Stimulus-Response (S-R) Theory (उद्दीपन-प्रतिक्रिया सिद्धान्त)।
4. Bond Theory of Learning (सीखने का सम्बन्ध-सिद्धान्त) ।
5. Trial and Error Learning (प्रयत्न एवं भूल का सिद्धान्त) ।
सिद्धान्त का अर्थ
जब व्यक्ति कोई कार्य सीखता है, तब उसके सामने एक विशेष स्थिति या उद्दीपक (Stimulus) होता है, जो उसे एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया (Response) करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, एक विशिष्ट उद्दीपक का एक विशिष्ट प्रतिक्रिया से सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, जिसे 'उद्दीपक प्रतिक्रिया सम्बन्ध' (S-R Bond) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। इस सम्बन्ध के फलस्वरूप, जब व्यक्ति भविष्य में उसी उद्दीपक का अनुभव करता है, तब वह उससे सम्बन्धित उसी प्रकार की प्रतिक्रिया या व्यवहार करता है।
थार्नडाइक द्वारा सिद्धान्त की व्याख्या
थार्नडाइक ने अपने सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए लिखा है—सीखना, सम्बन्ध स्थापित करना है। सम्बन्ध स्थापित करने का कार्य, मनुष्य का मस्तिष्क करता है।"
"Learning is connecting. The mind is man's connection system." -Thorndike
थार्नडाइक की धारणा है - सीखने की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का विभिन्न मात्राओं में सम्बन्ध होना आवश्यक है। यह सम्बन्ध विशिष्ट उद्दीपको और विशिष्ट प्रतिक्रियाओं के कारण स्नायुमण्डल (Nervous System) में स्थापित होता है। इस सम्बन्ध की स्थापना, सीखने की आधारभूत शर्त है। यह सम्बन्ध अनेक प्रकार का हो सकता है। इस पर प्रकाश डालते हुए बिगी एवं हण्ट (Bigge and Humt) ने लिखा है - "सीखने की प्रक्रिया में किसी मानसिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से शारीरिक क्रिया का मानसिक क्रिया से मानसिक क्रिया का मानसिक क्रिया से या शारीरिक क्रिया का शारीरिक क्रिया से सम्बन्ध होना आवश्यक है।
संयोजनवाद - इस सिद्धान्त का प्रवर्तक थार्नडाइक को ही माना जाता है। संयोजनवाद की परिभाषा एल. रेन (L Wren) ने निम्न प्रकार से दी है
"संयोजनवाद वह सिद्धान्त है जो समस्त मानसिक प्रक्रियाओं को परिस्थितियों और अनुक्रियाओं के बीच मूल एवं अर्जित संयोजन का कार्य मानता है।"
थार्नडाइक का प्रयोग
थार्नडाइक ने अपने सीखने के सिद्धान्त की परीक्षा करने के लिए अनेक पशुओं और बिल्लियों पर प्रयोग किए। उसने अपने एक प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को पिंजड़े में बंद कर दिया। पिंजड़े का दरवाजा एक खटके के दबने से खुलता था। उसके बाहर भोजन रख दिया। बिल्ली के लिए भोजन उद्दीपक था। उद्दीपक के कारण उसमे प्रतिक्रिया आरम्भ हुई। उसने अनेक प्रकार से बाहर निकलने का प्रयत्न किया। एक बार संयोग से उसका पंजा खटके पर पड़ गया। फलस्वरूप, वह दब गया और दरवाजा खुल गया। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया। अन्त में एक समय ऐसा आ गया, जब बिल्ली किसी प्रकार की भूल न करके खटके को दबाकर पिंजड़े का दरवाजा खोलने लगी। इस प्रकार उद्दीपक और प्रतिक्रिया में सम्बन्ध (S-R Bond) स्थापित हो गया थार्नडाइक (Thorndike) ने सम्बन्धवाद के सिद्धान्त में सीखने के क्षेत्र में प्रयास तथा त्रुटि (Trial and Error) को विशेष महत्त्व दिया है। प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि जब हम किसी काम को करने में त्रुटि या भूल करते हैं और बार-बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या कम या समाप्त की जाती है तो यह स्थिति प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना कहलाती है। वुडवर्थ (Woodworth) ने लिखा है- "प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिये अनेक प्रयत्न करने पड़ते हैं, जिनमें अधिकाश गलत होते हैं।
कक्षा शिक्षण में उपयोगिता
शिक्षा के क्षेत्र में थार्नडाइक के उद्दीपक अनुक्रिया के सिद्धान्त के महत्व को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
1. ने उद्दीपक अनुक्रिया में सम्बन्ध स्थापित करके सीखने की प्रक्रिया का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है। उसने बताया कि जो प्राणी जितना जल्दी यह सम्बन्ध स्थापित कर लेता है वह उतनी ही जल्दी सीख जाता है।
2. थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अधिगम के नियमों तथा उपनियमों का कक्षा शिक्षण में महत्त्वपूर्ण स्थान है। नवीन ज्ञान प्रदान करने के लिये छात्रों को पर करना, प्रोत्साहन तथा पुरस्कार द्वारा उन्हें अधिकाधिक सीखने के लिये प्रोत्साहित करना प्रत्येक छात्र को सीखने पर संतोष का अनुभव कराना प्रभाव के नियम पर ही आधारित है।
3. यह सिद्धान्त अभ्यास की क्रिया पर आधारित है जिससे सीखा गया कार्य स्थायी होता है। यदि कोई बालक अपने किसी कार्य में असफल हो जाता है तो अध्यापक को चाहिए कि वह तब तक विद्यार्थी को प्रयास करने के लिये प्रोत्साहित करता रहे जब तक कि वह सफलता प्राप्त न कर ले। इनकी मान्यता थी कि शिक्षण प्रक्रिया में अभ्यास कार्य पर अधिक बल देना चाहिए।
4. इस सिद्धान्त के अनुसार बालक को अधिगम लक्ष्य तो मालूम होता है लेकिन वहाँ तक पहुँचने का सही तरीका उसे मालूम नहीं होता। विभिन्न प्रयासों द्वारा वह लक्ष्य की प्राप्ति का सही तरीका ज्ञात करता है जिससे उसमें आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के गुणों का विकास होता है जो बालक को भावी जीवन की समस्याओं से लड़ने के लिये तैयार करता है।
5. मनुष्य गामक कुशलताओं (Motor Skills) का विकास इसी सिद्धान्त के आधार पर करता है। यह सिद्धान्त कौशल विकास में बहुत उपयोगी है। बालक कला, रेखाचित्र, संगीत, नृत्य, तैरना, घुड़सवारी आदि सीख जाते हैं।
Most important topic :
प्रयास एवं त्रुटि के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा जा सकता है कि जब हम किसी कार्य को करने में जो त्रुटि या गलती करते है, और अनेक बार प्रयास करके त्रुटियों की संख्या या गलतियों की संख्या कम की जाती है या समाप्त की जाती है। तो यह स्थिति "प्रयास एवं त्रुटि" द्वारा सीखना कहलाती है।”
वुडवर्थ के शब्दों में- “ प्रयास एवं त्रुटि में किसी कार्य को करने के लिए में अनेक प्रयत्न करने पड़ते है जिनमें अधिकांश गलत होते है।" (भूख- प्रेरणा, भोजन पुर्नवलन)
थार्नडाइक ने अपने मुख्य प्रयोग में एक भूखी बिल्ली को पिजरे (पहेली पेंटी) (Puzzle Box) में बंद कर दिया। पिंजरे का दरवाजा एक खटके या सलाखों के दबने से खुलता था और पिंजरे के बाहर भोजन रख दिया। भोजन भूखी बिल्ली के लिए उद्दीपक था।
नोट- उद्दीपक के कारण बिल्ली अनुक्रिया करना प्रारम्भ की। बिल्ली पिंजरे से बाहर आने के लिए, पिजरे में उछल-कूद, पंजा-मारना, आदि क्रिया करना प्रारम्भ कर दी। संयोग वश बिल्ली के पैरो द्वारा सलाखा दब जाता है। बिल्ली वाहर आकर भोजन को प्राप्त करने में सफल रही। थार्नडाइक ने इस प्रयोग को अनेको बार दोहराया। परिणामस्वरूप बिल्ली पिजरे के सलाने को खोलने में परिपक्व हो गयी। इस प्रकार उद्दीपक तथा अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसलिए थार्नडाइक ने "प्रयास एवं त्रुटि" को विशेष महत्व दिया।
थार्नडाइक ने बिल्ली के द्वारा सीखने की प्रक्रिया का विश्लेषण किया तथा निष्कर्ष निकाला कि सीखने के लिए दो महतवपूर्ण आवश्यक तत्व है।
Note:
(1) बिल्ली भूखी होनी चाहिए, अर्थात सीखने के लिए प्रेरणा का होना आवश्यक है।
(2) बिल्ली की भूख को संतुष्ट करने के लिए भोजन का होना जरूरी है। जो पुनर्वलन का कार्य कर सके।
दूसरे शब्दों में सीखने के लिए "पुनर्बलन" केन्द्रीय तत्व है तथा अनुक्रिय का परिणाम उद्दीपक अनुक्रिया बंधन को एस०आर० बान्ड को सुदृढ़ कर सकता है क्योंकि इस सिद्धान्त के अनुसार जीव प्रयास व त्रुटि करके सीखता है, इसलिए झ "प्रयास व त्रुटि का सिद्धांत" भी कहते है।
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