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व्योगास्की का सिद्धान्त।VYGOTSKY ka siddhant

व्योगास्की का सिद्धान्त (VYGOTSKY'S THEORY)


व्योगास्की सोवियत रूस के समाज मनोवैज्ञानिक थे, जिनका पूरा नाम लेव व्योगास्की था। इन्हें बालक के सामाजिक विकास तथा समायोजन पर अपने विचारों का प्रतिपादन व व्यवहरण किया। 


व्योगारकी का सामाजिक विकास का सिद्धान्त बालकों के सामाजिक विकास से सम्बन्धित एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया। इस सिद्धान्त में व्योगास्की ने बताया कि बालक में हर प्रकार के विकास में उसके समाज का विशेष योगदान होता है। उन्होंने बताया कि समाज के अन्त क्रिया के फलस्वरूप है

इसमें प्रकार का विकास होता है। समाज में उसे जिस प्रकार की सुविधा उपलब्ध होती है या समाज बालक से जिस प्रकार का व्यवहार करता है, उसका विकास उसी के प्रतिक्रिया व समायोजन स्वरूप है। यदि समाज में सभी प्रकार की सुविधा उचित व्यवहार उपलब्ध नहीं है, तो इसका उसके (बालक के) व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।


जन्म के समय बालक सामाजिक प्राणी नहीं होता। वह सामाजिकता से काफी दूर होता है। वह अत्यधिक स्वार्थी होता है। बालक को केवल अपनी शारीरिक आवश्यकताओं (भूख, सुरक्षा आदि) को पूरा करने की ललक होती है तथा दूसरों के हित-चिन्तन की वह कुछ भी परवाह नहीं करता है। वह इस आयु में गुड्डे-गुड़ियों, खिलौने, मूर्ति आदि निर्जीव पदार्थों, पशु-पक्षियों मनुष्य आदि सजीव प्राणियों में अन्तर नहीं समझता है। शिशुओं के सामाजिक सम्पर्क का क्षेत्र बहुत ही सीमित होता है। अतः सामाजिक विकास के दृष्टिकोण से उनसे बहुत आशा नहीं की जा सकती है। बाल्यावस्था में प्रवेश करने के साथ-साथ अधिकांश बच्चे विद्यालय में जाना प्रारम्भ कर देते हैं और अब उनका सामाजिक क्षेत्र विस्तृत बनता चला जाता है।


बाल्यावस्था के बाद किशोरावस्था में लिंग सम्बन्धी चेतना तीव्र हो जाती है। इस आयु में अधिकत्तर किशोर तथा किशोरियाँ अपने वय-समूह के सक्रिय सदस्य हो जाते हैं। समूह के प्रति उत्पन्न अब केवल टोली या गिरोह विशेष तक ही सीमित नहीं रहती, बल्कि यह विद्यालय, समुदाय, प्रान्त और राष्ट्र तक व्यापक बन जाती है। सहानुभूति, सहयोग, सद्भावना, परोपकार और त्याग का अद्भुत सामंजस्य इस अवस्था में देखने को मिलता है। किशोरावस्था संवेगों की तीव्र अभिव्यक्ति की अवस्था भी है। इस अवस्था में विशिष्ट, रुचियों और सामाजिक सम्पर्क का क्षेत्र भी अत्यधिक विस्तृत होता है। वैयक्तिक विशेषताओं के अतिरिक्त संस्कृति, परिवार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति यौन सम्बन्धी स्वतन्त्रता और जानकारी आदि उनकी सामाजिक रुचियों और सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करती है। 


सामाजिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक


व्योगास्की के अनुसार बालक के सामाजिक विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं 


1. परिवार समाजीकरण का प्रारम्भ परिवार से होता है। परिवार की आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्थिति, सांस्कृतिक स्वीकार्यता शैक्षिक स्तर व आपसी सामंजस्य बालक के सामाजिक समायोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाहन करते हैं।


2. समाज- बालक जिस समाज में रहता है, उस समाज के अधिकाश (बहुमत) लोगों का व्यवहार, बालक के प्रति सोच बालक के समाजीकरण को प्रभावित करता है यदि बालक के प्रति सहानुभूति व सद्भावना व उच्च विचार व व्यवहार है तो बालक अच्छा सामाजिक व्यक्ति बनेगा अन्यथा व कुसमायोजित होकर विद्रोही या अपराधी बन सकता है।


3. अवसर की प्राप्ति बालक को सामाजिक बनाने में अवसर की प्राप्ति व अवसरों की समानता - महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, यदि बालक को अपनी प्रतिभा, क्षमता के प्रदर्शन करने व प्रयोग करने का अवसर मिलता है तो उसका समाजीकरण अच्छा होगा। अन्यथा बालक कुण्ठित व कुसमायोजित हो सकता है।


4. आर्थिक स्थिति बालक के माता-पिता, अभिभावक की आर्थिक स्थिति का समाजीकरण पर प्रभाव पड़ता है। इससे अच्छे लालन-पालन, अच्छा वातावरण मिलता है जिससे समाजीकरण ठीक से होता है।


5. अन्य कारक- बालक के समाजीकरण में विद्यालय शिक्षक, यातायात व मनोरंजन के साधन आदि का प्रभाव पड़ता है।


व्योगास्की के सिद्धान्त का शिक्षा में उपयोग (Implications of Vygotsky's Theory in Educatio 1. सीखना विकास की ओर निर्देशित कर सकता है। सामाजिक वातावरण सीखने में सहायत करता है। 2. कक्षा में बच्चे ज्ञान का सृजन करते हैं।

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