6 : कहानी-कथन प्रविधि (STORY TELLING TECHNIQUE)
कहानी कहना एक विधि है। इसका प्रयोग विधि प्रविधि दोनों रूपों में किया जाता है। कहानी विधि के अन्तर्गत कथन, बातचीत, भाषण इत्यादि का समावेश रहता है। कहानी कहने का अभिप्राय है बच्चों की भावनाओं, उनके संवेगों को स्पर्श कर उन्हें रचनात्मक कार्य करने के लिये प्रेरित करना। कहानी एक ऐसी कला है जो हर अवस्था, हर स्तर तथा हर समूह द्वारा रोचकता व सरलतापूर्वक ग्रहण कर ली जाये
कहानी को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जा सकता है
1. सत्य कहानियाँ (True Stories),
2. पुराण सम्बन्धी (Myths),
3. पौराणिक (Jegend) रामायण, महाभारत ।
मनोवैज्ञानिकों का यह कहना है कि बच्चे के विकास के साथ-साथ उसकी रुचियों, प्रवृत्तियों संवेगों, भावनाओं तथा अभिरुचियों में अन्तर आता है। इसलिये बच्चे को उसकी अवस्था के अनुकूल कहानियों का अध्ययन कराया जाये। बच्चे को प्रारम्भिक अवस्था में परियों की बाल्यावस्था में मारधाड़ और किशोरावस्था में साहसिक कहानियों को सुनने में आनन्द आता है। अतः शिक्षक द्वारा इस बात को ध्यान में रखते हुए इसी प्रकार की कहानियों को बच्चों के सामने प्रस्तुत करना चाहिये।
अध्यापक को निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए
(1) कहानी बनाते समय उसके उद्देश्यों से अध्यापक पूर्ण अवगत होना चाहिए।
(2) उसे छात्र के स्तर का ध्यान रखना चाहिए।
(3) भाषा आसान एवं बालकों की आयु के अनुसार होनी चाहिए।
(4) अध्यापक की शैली प्रभावपूर्ण होनी चाहिए।
(5) कहानी इस प्रकार की हो कि विद्यार्थियों की जिज्ञासा बढ़े।
(6) प्रसंग के अनुसार उपलब्ध शिक्षण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
कहानी-कथन प्रविधि के गुण (Merits of Story Telling Technique)
इस विधि में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं
(1) बालकों की रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहती है।
(2) यह मनोवैज्ञानिक विधि है।
(3) ज्ञान आसानी से दिया जाना सम्भव होता है।
(4) ज्ञान प्राप्ति के साथ-साथ बालकों का मनोरंजन भी होता है।
(5) इस विधि द्वारा नीरस एवं उबाऊ विषय-वस्तु को भी प्रभावपूर्ण ढंग से पढ़ाया जा सकता है।
(6) इस विधि में वास्तविक तथ्यों को ही छात्रों के सम्मुख रखा जाता है।
कहानी-कथन प्रविधि के दोष (Demerits of Story Telling Technique)
इसमें निम्नांकित दोष है
(1) प्रत्येक अध्यापक कहानी बनाने एवं कहने की कला में प्रवीण नहीं होता है।
(2) उच्च स्तर पर इसका उपयोग करना कठिन है।
उक्त आधार पर यही निष्कर्ष निकलता है कि इसमें अधिकांश गुण ही हैं। अच्छा कुशल कहानी कहने वाला अध्यापक न मिलना इस विधि का दोष तो है, नहीं, यह तो अच्छे अध्यापकों की कमी में आता है। यन्त्र का चलाना न आना किसी यन्त्र का दोष नहीं है।
अतः कहा जा सकता है कि प्राथमिक स्तर पर 'कहानी विधि' बहुत उपयोगी है, अतः इस विधि का उपयोग करना अपेक्षित है।
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