सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रश्नोत्तर विधि क्या है।प्रश्नोत्तर विधि के जनक कौन है।प्रश्नोत्तर प्रविधि की विशेषताएँ।प्रश्नोत्तर विधि की आवश्यकता एवं महत्व।प्रश्नोत्तर प्रविधि के गुण



                             प्रश्नोत्तर प्रविधि 

       (QUESTIONS ANSWER TECHNIQUE)


 प्रश्नोत्तर विधि क्या है(prashnottar vidhi kya hai)

यह विधि भाषा अध्ययन के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस विधि में प्रश्नों और उत्तरों की प्रधानता होने के कारण भी इसे प्रश्नोत्तर विधि भी कहते है इस विधि में अध्यापक छात्रों से ऐसे प्रश्न पूछता है जिससे छात्रों में रुचि एवं जिज्ञासा बनी रहे और वह कक्षा के सहयोग से ही उत्तर ढूंढने का प्रयास करता है और शंका या संदेश होने पर उसका समाधान भी करता है।


प्रश्नोत्तर विधि के जनक कौन है(prashnottar vidhi ke janmdata kaun hai)


प्रश्नोत्तर विधि के जनक प्रसिद्ध विद्वान तथा दार्शनिक सुकरात है।


सुकरात के समय से चली आने वाली यह एक प्राचीन पद्धति है। इस पद्धति के तीन सोपान हैं 

1. प्रश्नों को व्यवस्थित रूप से निर्मित करना ।

2. उन्हें समुचित रूप से छात्रों के सामने रखना ताकि नये ज्ञान के लिये उनमें उत्सुकता जाग्रत हो सके, तथा

3. छात्रों के माध्यम से उनमें सम्बन्ध स्थापित करते हुए नवीन ज्ञान देना। इसमें आवश्यकतानुसार निम्न स्तर, मध्यम स्तर एवं उच्च स्तर के प्रश्न आवश्यकतानुसार प्रयोग किये जा सकते हैं।


प्रश्नोत्तर प्रविधि की विशेषताएँ (Characteristics of Questions Answer Technique)


1. इस विधि के प्रयोग करने से छात्र सक्रिय रहते हैं।


2. छात्र नये ज्ञान को प्राप्त करने के प्रति उत्सुक रहते हैं।


3. यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है।


4. इस विधि से पाठ के विकास में सहायता मिलती है। में


5. छात्रों में विचार करने एवं चिन्तन करने की शक्ति का विकास होता है।


6. यह विधि पाठ के प्रत्यास्मरण में सहायक है।


7. इस विधि से छात्रों की समस्याओं एवं कठिनाइयों का निराकरण किया जा सकता है। 


8. छात्रों के ज्ञान का मूल्यांकन करने में सहायक है।


प्रश्नोत्तर विधि की आवश्यकता एवं महत्व 


1. पूर्वज्ञान का पता लगाकर आगे आने वाले ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ने के लिये।


2. बच्चों की समस्याओं को जानने और उनके निवारण हेतु प्रश्न आवश्यक होते हैं।


3. बच्चों ने पढ़ा हुआ पाठ कितना अर्जित किया है इस हेतु प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है। 


4. पाठ के पुनरावलोकन के लिये भी प्रश्नों की आवश्यकता पड़ती है।


5. बालक को प्रेरित करना तथा नये ज्ञान के प्रति जिज्ञासु बनाने के लिये प्रश्नों की आवश्यकत होती है।


रेमेट का मत है कि उत्तम प्रश्न हल करने की योग्यता प्राप्त करना प्रत्येक शिक्षक की आकांक्षा होनी चाहिये। अतः इस कला में दक्षता एवं निपुणता प्राप्त करने के लिये शिक्षकों को यह ज्ञात होना चाहिये कि प्रश्न पूछने के उद्देश्य क्या है ? 


प्रश्न पूछने के उद्देश्य (Aims of Asking Question)


विभिन्न विषयों में प्रश्नों का अपना विशिष्ट महत्त्व व उद्देश्य होता है। सामान्यतः प्रश्नों के निम्न उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पूछा जाता है


1. प्रेरित करना।


2. रुचियों, अभिरुचियों तथा योग्यताओं का पता लगाना।


3. अर्जित ज्ञान व नवीन ज्ञान से सम्बन्ध जोड़ना


4. समस्याओं को उत्पन्न करना व निवारण करना।


5. क्रियाशीलता हेतु।


6. बच्चों के शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक ज्ञान का पता लगाना।।


7. ध्यान केन्द्रित करना ।


8. बालक के अर्जित ज्ञान को अग्रसर कर नई दिशा प्रदान करना।


9. ज्ञान का मूल्यांकन करने हेतु।


10. बच्चों में सजगता लाना तथा उनकी अभिव्यंजनात्मक शक्ति का पता लगाना।


11. आत्मविश्वास उत्पन्न करने हेतु। 12. उनके ज्ञान, उसके प्रयोग व चातुर्य (Skill) का पता लगाना।


13. छात्र व कार्य का मूल्यांकन करने हेतु।


14. पाठ का उचित तथा व्यवस्थित रूप में विकास करने हेतु 


15. सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शन करना।


16. तर्क, विचार, अन्वेषण व अनुसन्धान के लिये प्रेरित करना


अच्छे प्रश्नों की विशेषताएँ (Characteristics of Good Questions)


1. सरल व स्पष्ट प्रश्न ।


2. बच्चों की शारीरिक, मानसिक अवस्था, रुचि, योग्यता तथा अभिरुचि पर आधारित प्रश्न।


3. प्रेरणा उत्पन्न करने वाले प्रश्न ।


4. निश्चित उत्तर वाले प्रश्न ।


5. निरीक्षण, अवलोकन, चिन्तन मनन व तर्क शक्ति को उत्पन्न करने वाले प्रश्न।


6. प्रश्नों की भाषा सरल व शैली आसान हो।


7. सम्बन्धात्मक तथा व्यवस्थित प्रश्न।


8. परिणामों की प्रभावोत्पादकता को दर्शाने वाले प्रश्न।


प्रश्नोत्तर प्रविधि के गुण 


• प्रश्नोत्तर का प्रयोग करने से पहले बालक के पूर्व ज्ञान को जरूर जाँच लेना चाहिए| 


• इस विधि में शिक्षक के साथ-साथ विद्यार्थी भी क्रियाशील रहते है| 


• इस प्रविधि से कक्षा में शिक्षण रुचिकर होता है जिससे अनुशासन हीनता की संभावना नहीं रहती है|  


प्रश्नोत्तर प्रविधि के दोष


• यह प्रविधि कभी-कभी शिक्षण के अधिगम में बाधक भी बनती है|


• यह प्रविधि उच्च शिक्षा के लिए अनुपयोगी है| 


• इस प्रविधि से छात्र को समस्त पाठ्य-वस्तु का ज्ञान नहीं हो पाता|

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

भ्रमण प्रविधि / क्षेत्रीय पर्यटन प्रविधि क्या है।इसकी परिभाषा। प्रकार।उद्देश्य।उपयोगिता

14 : भ्रमण प्रविधि / क्षेत्रीय पर्यटन प्रविधि (FIELD TOUR TECHNIQUE) छात्रों व बालकों की यह मनोवृत्ति होती है कि वे समूह में रहना, समूह में खेलना तथा अपनी अधिकतम क्रियाओं को समूह में करना चाहते हैं तथा उनका अधिगम भी समूह में उत्तम प्रकार का है। क्योंकि छात्र जब समूह के साथ 'करके सीखना' (Learning by Doing) है तो वह अधिक स्थायी होता है। इसके साथ ही छात्र पर्यटन (Trip) के माध्यम से वस्तुओं का साक्षात् निरीक्षण करने का अवसर प्राप्त होता है। इस युक्ति से जो ज्ञान प्राप्त करते हैं। वह वस्तु की आकृति या वातावरण की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेता है। क्योंकि बालकों को घूमना-फिरना बहुत पसन्द होता है और हँसते-हँसते, घूमते-फिरते पर्यटन युक्ति के माध्यम से आवश्यक जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।  अध्यापक को इस युक्ति में दो प्रकार से सहायता करनी पड़ती है- 1. पर्यटन पर छात्रों को ले जाने की व्यवस्था करना। 2. पर्यटक स्थान पर छात्रों को निर्देशन देना तथा वस्तु की वास्तविकता से परिचित कराना।  क्षेत्रीय पर्यटन प्रविधि की परिभाषा (Definitions of Field Tour Technique) क्षेत्रीय पर्यटन युक्ति के विषय म...

शिक्षण की नवीन विधाएं (उपागम)।उपचारात्मक शिक्षण क्या है।बहुकक्षा शिक्षण / बहुस्तरीय शिक्षण।

शिक्षण की नवीन विधाएं (उपागम) हेल्लो दोस्तों आज हम बात करेंगे  उपचारात्मक शिक्षण क्या है, उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ, उपचारात्मक शिक्षण की विधियाँ, तथा  बहुकक्षा शिक्षण / बहुस्तरीय शिक्षण :  बहुकक्षा शिक्षण का अर्थ, बहुकक्षा शिक्षण की आवश्यकता, बहुकक्षा शिक्षण की समस्याएँ तथा उसका समाधान,  बहुस्तरीय शिक्षण का अर्थ, बहुस्तरीय शिक्षण की आवश्यकता, बहुस्तरीय शिक्षण विधि के उद्देश्य, बहुस्तरीय शिक्षण विधि ध्यान रखने योग्य बातें👍 6 : उपचारात्मक शिक्षण (REMEDIAL TEACHING) शिक्षा की आधुनिक अवधारणा में जबकि शिक्षा बाल केन्द्रित हो चुकी है तथा शिक्षण का स्थान अधिगम ने ले लिया है, शिक्षा जगत् में एक और संकल्पना विकसित हुई है जिसे व्यापक तथा सतत् मूल्यांकन कहते हैं। यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ उसके विभिन्न अंग के रूप में चलता रहता है। इसका लक्ष्य यह ज्ञात करना होता है कि  (1) बच्चा अपने स्तर के अनुरूप सीख रहा है या नहीं ? (2) सीखने के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आ रही हैं ? (3) बच्चा किस गति से सीख रहा है ? (4) यदि बच्चे में अपेक्षित सुधार नहीं है तो इसके लिये क...