शिक्षण की नवीन विधाएं (उपागम)
हेल्लो दोस्तों आज हम बात करेंगे उपचारात्मक शिक्षण क्या है,उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ,उपचारात्मक शिक्षण की विधियाँ, तथा बहुकक्षा शिक्षण / बहुस्तरीय शिक्षण : बहुकक्षा शिक्षण का अर्थ,बहुकक्षा शिक्षण की आवश्यकता,बहुकक्षा शिक्षण की समस्याएँ तथा उसका समाधान, बहुस्तरीय शिक्षण का अर्थ,बहुस्तरीय शिक्षण की आवश्यकता,बहुस्तरीय शिक्षण विधि के उद्देश्य,बहुस्तरीय शिक्षण विधि ध्यान रखने योग्य बातें👍
6 : उपचारात्मक शिक्षण (REMEDIAL TEACHING)
शिक्षा की आधुनिक अवधारणा में जबकि शिक्षा बाल केन्द्रित हो चुकी है तथा शिक्षण का स्थान अधिगम ने ले लिया है, शिक्षा जगत् में एक और संकल्पना विकसित हुई है जिसे व्यापक तथा सतत् मूल्यांकन कहते हैं। यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ उसके विभिन्न अंग के रूप में चलता रहता है। इसका लक्ष्य यह ज्ञात करना होता है कि
(1) बच्चा अपने स्तर के अनुरूप सीख रहा है या नहीं ?
(2) सीखने के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आ रही हैं ?
(3) बच्चा किस गति से सीख रहा है ?
(4) यदि बच्चे में अपेक्षित सुधार नहीं है तो इसके लिये क्या प्रयास किया जाये ?
उपचारात्मक शिक्षण का अर्थ (Meaning of Remedial Teaching)
निदानात्मक परीक्षणों द्वारा छात्रों की समस्या या कठिनाई के कारणों का ज्ञान हो जाने के उपरान्त उपचार हेतु किया जाने वाला शिक्षण उपचारात्मक शिक्षण कहलाता है।
शिक्षा शब्दकोश में उपचारात्मक शिक्षण के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है, "उपचारात्मक शिक्षण एक छात्र की कमी निम्न सामान्य योग्यता के कारण नहीं, को अंशतः अथवा पूर्णत दूर करने के लिये उद्दिष्ट विशेष शिक्षण है।"
ब्लेअर तथा जोन्स के अनुसार, "उपचारात्मक शिक्षण मूलतः एक उत्तम शिक्षण विधि है जो छात्रों को अपने मानसिक स्तर के अनुरूप प्रगति करने का अवसर देती है। यह उसे प्रेरणा की आन्तरिक विधियों के द्वारा उसकी क्षमता के अनुसार उच्च मापदण्ड तक पहुँचाती है। यह कठिनाइयों के सतर्कतापूर्ण निदान पर आधारित तथा छात्रों की आवश्यकताओं एवं रुचियों के अनुकूल होती है।"
निदानात्मक मूल्यांकन और उपचारात्मक शिक्षण एक-दूसरे से इस प्रकार जुड़े हुए हैं कि विश्लेषण और विवेचन के कार्यों के अतिरिक्त उनको पृथक करना कठिन है।
उपचारात्मक शिक्षण का महत्व (Importance of Remedial Teaching)
(1) इससे छात्रों की कठिनाइयों का निराकरण होता है।
(2) इसमें छात्रों को विशेष शिक्षा प्राप्त होती है।
(3) उपचारात्मक शिक्षण में छात्रों को अपने विचारों को संगठित करने, व्याख्या करने व तुलना करने का अवसर प्राप्त होता है।
(4) इसके प्रयोग से छात्र अन्य छात्रों के साथ अध्ययन कर पाता है।
(5) छात्रों की सभी कमजोरियों पर बल दिया जाता है।
(6) छात्र अपने कार्य में रुचि लेने लगते हैं।
(7) छात्रों को इस प्रकार के शिक्षण में समुचित अभिप्रेरणा प्रदान की जाती है।
उपचारात्मक शिक्षण की विधियाँ (Methods of Remedial Teaching)
यदि बच्चे के व्यवहार में अपेक्षित सुधार नहीं है तो उसके लिये उपचारात्मक तथा निदानात्मक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। उपचारात्मक शिक्षण में हम निम्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं.
(i) अभ्यास पुस्तिका या कार्य पुस्तिका का उपयोग करके।
(ii) दृश्य-श्रव्य सामग्री का उपयोग करके।
(iii) संदर्भ पुस्तक या अन्य सामग्री का प्रयोग करके।
(iv) पुरस्कार तथा प्रशंसा का उपयोग करके।
(v) सहपाठी अध्ययन समूह बनाकर।
(vi) वैकल्पिक शिक्षण विधि का प्रयोग करके।
7 : बहुकक्षा शिक्षण / बहुस्तरीय शिक्षण (MULTICLASS TEACHING/MULTISTEP TEACHING)
वर्तमान समय में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में निरन्तर जनसंख्या वृद्धि के कारण विद्यालयों में छात्र संख्या तो बढ़ती जा रही है लेकिन उस अनुपात में शिक्षकों की संख्या अभी भी बहुत कम है। अनेक विद्यालय ऐसे हैं जहाँ एक ही अध्यापक कक्षा एक से पाँच तक के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। प्रत्येक कक्षा के लिए अध्यापक की नियुक्ति एक जटिल समस्या बनी हुई है। इसके साथ एक विद्यालय की विभिन्न कक्षाओं में अध्ययनरत छात्रों की वैयक्तिक भिन्नता, उपलब्धि, अभिरुचि तथा मानसिक परिपक्वता एक अलग से एक समस्या उत्पन्न करती है। अपनी मानसिक योग्यता, अभिरुचि और विकास क्रम की विशिष्टता के कारण ही एक ही कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के अधिगम का स्तर भी भिन्न-भिन्न होता है।
इस समस्या के समाधान हेतु ऐसी शिक्षण युक्तियाँ और तकनीकें अपनानी होंगी, जिनके द्वारा एक ही समय में एक से अधिक कक्षाओं का संचालन सुचारु रूप से किया जा सके।
बहुकक्षा शिक्षण का अर्थ (Meaning of Multiclass Teaching)
विद्यालयों में कक्षा-कक्षों के अभाव में दो या दो से अधिक कक्षाओं को एक साथ पढ़ाना पड़ता है. जिससे शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसी कमी को दूर करने के लिए ही बहुकक्षा शिक्षण की व्यवस्था अपनायी जाती है। बहुकक्षा शिक्षण का आशय प्रभावी प्रबन्धन विधियों को अपनाकर व्यवस्थित शिक्षण से है।बहुकक्षा शिक्षण का सीधा अर्थ है—एक शिक्षक द्वारा एक से अधिक कक्षाओं से एक साथ पढ़ाना। इसमें शिक्षक एक से अधिक कक्षा के बच्चों को एक साथ बैठाकर शिक्षण करता है।
बहुकक्षा शिक्षण को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए शिक्षक को पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों, संदर्शिकाओं, समय विभाजन चक्र, समूह-नायक (Peer leader), मॉनीटर, बैठक व्यवस्था, बच्चों के विषयवार समूह को सही रूप में संचालित करना होता है। इसमें शिक्षक को एक से अधिक कक्षाओं के बच्चों को एक साथ बैठाकर शिक्षण कार्य करना होता है। बच्चों को छोटे-छोटे समूहों में बाँटकर उन्हें समूह कार्य दिया जाता है, जिससे बच्चों को एक-दूसरे के साथ चर्चा करते हुए तथा एक-दूसरे को सहयोग देते हुए विषय को समझने का अवसर मिल जाता है। शिक्षक एक समूह को कार्य देकर दूसरे समूह के साथ कार्य करता है।
बहुकक्षा शिक्षण की आवश्यकता (Need of Multiclass Teaching)
बहुश्रेणी शिक्षण (बहुकक्षा शिक्षा) आज एक अपरिहार्य आवश्यकता है क्योंकि हमारे अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या प्रति विद्यालय (कक्षा-1 से 5 तक प्रत्येक कक्षा हेतु शिक्षक) से कम है। बहुश्रेणी शिक्षण में शिक्षक को भाषा, गणित तथा पर्यावरणीय अध्ययन के साथ-साथ कला और कार्यानुभव का भी शिक्षण करना अनिवार्य होता है। सज्ञानात्मक क्षेत्र के साथ ही सह-संज्ञानात्मक क्षेत्र में भी बहुत से कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस शिक्षण में गीत, लोकगीत, नाटक, कविता पाठ तथा अन्त्याक्षरी आदि को विशेष महत्त्व प्रदान किया जाता है। ये क्रिया-कलाप शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक होते हैं। बहुश्रेणी शिक्षण में मॉनीटर प्रणाली तथा प्रोजेक्ट प्रणाली का विशेष महत्व होता है। प्रोजेक्ट कार्य को करने के लिए बच्चों को समूहों में बाँट दिया जाता है क्योंकि समूह में सीखना प्रत्येक शिक्षण विधा हेतु आवश्यक होता है। समूह के द्वारा उनमें सहभागिता से कार्य करने की भावना जाग्रत होती है। वे एक-दूसरे के अभ्यास कार्यों को स्वयं हल करते हैं साथ ही साथ उनकी त्रुटियों का सुधार भी करते रहना चाहिए। ऐसा करने से सक्रिय अधिगम की स्थिति प्राप्त होती है, साथ-ही अनुशासन भी बना रहता है तथा अध्यापक को ऐसा करने से अधिक समय मिल जाता है, जिसका वे अन्यत्र भी उपयोग कर सकते हैं।
बहुकक्षा शिक्षण की समस्याएँ (Problems of Multiclass Teaching)
बहुकक्षा शिक्षण में छात्र एवं अध्यापक के सामने अनेक समस्या आती है उनमें से कुछ निम्नवत् है
1. बहुकक्षा शिक्षण में अध्यापक सभी विषयों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं।
2. कक्षा-कक्ष में अनुशासनहीनता बनी रहती है।
3. अध्यापक को मॉनीटर में निर्भर रहना पड़ता है।
4. एकल अध्यापक विद्यालयों में अध्यापक के आकस्मिक अवकाश पर जाने से विद्यालय की छुट्टी हो जाती है।
5. अध्यापक कक्षा में उपस्थित सभी छात्रों पर ध्यान नहीं दे पाते।
6. अध्यापकों को बहुकक्षा शिक्षण हेतु प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है।
7. अध्यापक पर कार्य का भार (Work load) बढ़ जाता है।
8. कक्षा-कक्ष में सम्प्रेषण प्रक्रिया स्थापित नहीं होती है।
9. अध्यापक छात्रों को समझाने में सफल नहीं हो पाता है।
10. विद्यालय में कक्षा-कक्ष एवं शिक्षा उपकरणों का अभाव।
बहुकक्षा शिक्षण की समस्याओं का समाधान (Solve of Problems of Multiclass Teaching)
"शिक्षण में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिये निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं
1. शिक्षक द्वारा शिक्षण से पूर्व ही योजना बना लेनी चाहिये।
2. नैतिक शिक्षा तथा शारीरिक शिक्षा के लिये सभी छात्रों को एक साथ एकत्रित किया जाये।
3. अध्यापक की अनुपस्थिति में कक्षा को देखने हेतु मॉनीटर का चुनाव करें।
4. छात्रों को स्वयं करने के लिये देना चाहिये तथा मॉनीटर कक्षा का निरीक्षण करें।
5. शिक्षक शिक्षण योजना ऐसी बनायें जिससे प्रत्येक कक्षा, वर्ग एवं छात्र शिक्षक को दिखायी दें।
बहुस्तरीय शिक्षण (MULTISTEP TEACHING)
बहुस्तरीय शिक्षण का अर्थ (Meaning of Multistep Teaching)
"मानसिक स्तरीय शिक्षण ही बहुस्तरीय शिक्षण कहलाता है।" एक ही कक्षा में अलग-अलग तरीके से व अलग-अलग गति से सीखने वाले छात्र होते हैं। जब एक शिक्षक एक ही समय में कक्षा के प्रत्येक बच्चे को उसके स्तर के आधार पर समूहों में बाँटकर शिक्षण कार्य करता है, तो वह बहुस्तरीय शिक्षण कहलाता है। जैसे किसी कक्षा में गणित विषय में तेज, मध्यम तथा धीमी गति से सीखने वाले बच्चे हैं, उन्हें क्रमश कठिन, मध्यम एवं सरल प्रश्न देकर हल कराना। बहुस्तरीय शिक्षण कहलाता है। मूल्यांकन के आधार पर बच्चों की उपलब्धि स्तर का निर्धारण ABCD ग्रेड से करके पाठ्यवस्तु का शिक्षण बच्चों के मानसिक स्तर और उनके सीखने की दर के अनुसार करना ही उपयुक्त होता है।
बहुस्तरीय शिक्षण की आवश्यकता (Need of Multistep Method)
1. बच्चों की उपलब्धि स्तर का अलग होना।
2. बच्चों में सीखने की गति का अलग-अलग होना।
बहुस्तरीय शिक्षण विधि के उद्देश्य (Aims of Multistep Method)
बहुस्तरीय शिक्षण विधि के निम्नलिखित उद्देश्य हैं
1. छात्रों के समय का सदुपयोग करना।
2. छात्रों को उपयुक्त विधि से शिक्षण कार्य करना।
3. शिक्षकों के अभाव में उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना।
4. विद्यालय परिसर में अनुशासन बनाना।
5. छात्रों का विकास रुचि एवं भिन्नताओं के आधार पर करना।
6. छात्रों में सृजनात्मक शक्ति का विकास करना।
7. शिक्षा शिक्षण प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाना।
8. छात्रों को लोक संस्कृति —गीत, नाटक, लोकगीत, कविता पाठ आदि से परिचित करना।
9. छात्रों का मानसिक विकास स्वाभाविक रूप से करना ।
10. छात्रों को पाठ्यक्रम में निर्देशित दक्षताओं में प्रवीण करना।
बहुस्तरीय शिक्षण विधि ध्यान रखने योग्य बातें
बहुस्तरीय शिक्षण विधि का प्रयोग बड़ी सावधानी व सूझ-बूझ से करना चाहिये इसका प्रयोग करते समय निम्न बातों को ध्यान रखना परम आवश्यक है
1. बहुस्तरीय शिक्षण व्यवस्था में सबसे पहला प्रयोग छात्रों के बैठने की उचित व्यवस्था से है। क्योंकि प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों में एक या दो कमरे होते है। छात्रों को इस प्रकार बैठाना चाहिये कि वे एक दूसरी कक्षा को परेशान न करे तथा अध्यापक भी उन सभी छात्रों को आसानी से देख सकें।
2. समय सारिणी बनाते समय कमरे तथा शिक्षकों की संख्या को ध्यान में रखकर ही संरचना करनी चाहिये। इसमें शिक्षक को चाहिये कि वह छात्रों की पाठ्यवस्तु एवं सहायक क्रियाओं के अतिरिक्त पर्यावरण आदि का भी दे। जिससे छात्रों को आसानी से पढ़ाया जा सके।
3. बहुस्तरीय शिक्षण विधि में अध्यापक छात्रों की रुचियों, भिन्नताओं को ध्यान में रखकर ही शिक्षण करे।
4. यदि विद्यालय प्रांगण में वृक्ष है तो वहाँ पर शिक्षण कार्य किया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे कि वहाँ ऐसी वस्तु या वातावरण न हो जिससे छात्रों के शिक्षण में बाधा उत्पन्न हो ।
5. बहुस्तरीय शिक्षण विधि में सबसे बड़ी ध्यान में रखने योग्य बात है— मॉनीटर का चुनाव। उपयुक्त एवं कर्मठ कार्यकर्ता को ही चुनना चाहिये, जिससे शिक्षण उपयुक्त हो । ।
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