8. उदाहरण प्रविधि (ILLUSTRATION TECHNIQUE)
उदाहरण बालक की विचार-शक्ति एवं कल्पना को जाग्रत कर उसके मानसिक विकास के प्रति सहायक होते हैं। उदाहरणों द्वारा अमूर्त विषय को मूर्त बनाया जाता है। इसके द्वारा बालकों के मस्तिष्क पर ज्ञान की अमिट छाप पड़ जाती है। यह विषय के विविध पक्षों का पारस्परिक सम्बन्ध समझने में असमर्थ होता है।
पिनसेण्ट के मतानुसार अच्छे उदाहरण दरूह कथन को सजीव एवं सरल बना देते हैं।
तात्पर्य यह है कि उदाहरण विषय की क्लिष्टता को कम करते हैं। इनमें बालक के प्रत्यक्ष अनुभवों से सम्बन्ध होने के कारण विषय सरल तथा बोधगम्य बन जाता है। आमतौर से जब हम कोई गूढ़ बात करते हैं तो उसे स्पष्ट बनाने के लिए उदाहरणों का प्रयोग करते हैं। शिक्षण में उदाहरणों का प्रयोग करना एक कला है। विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले विषयों के शिक्षण में इनका प्रयोग आवश्यक होता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पाठ्य-वस्तु की स्पष्टता, रोचकता, बोधगम्यता एवं मूर्तता की दृष्टि से उदाहरणों का प्रयोग बड़ा महत्त्वपूर्ण है ।
उदाहरण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
1. शाब्दिक उदाहरण—जैसे-दृष्टान्त, कहानी, लोकोक्ति तथा नीति-श्लोक आदि।
2. प्रदर्शनात्मक उदाहरण जैसे-मानचित्र, रेखाचित्र, ग्लोब, मॉडल, चार्ट तथा ग्राफ आदि।
उदाहरणों को प्रभावोत्पादक ढंग से प्रयोग करने के निमित्त कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना आवश्यक है, जो इस प्रकार है
(1) पाठ में उदाहरणों का प्रयोग उचित स्थल पर एवं उचित मात्रा में करना चाहिए।
(2) हमेशा एक ही प्रकार के उदाहरण न दिये जायें, उदाहरणों में विविधता लाने का प्रयास करना चाहिए।
(3) उदाहरणों की सजीवता एवं स्पष्टता पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए।
(4) उदाहरण की भाषा सरल, शुद्ध तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
(5) विषय की व्याख्या करने की दृष्टि से उदाहरणों का उपयुक्त होना परमावश्यक है।
(6) उदाहरणों का बालक के पूर्व ज्ञान से सम्बन्धित होना आवश्यक है।
(7) शाब्दिक तथा प्रदर्शनात्मक उदाहरणों का प्रयोग हेर-फेर के साथ होना आवश्यक है।
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