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सम्प्रेषण के प्रकार।प्रभावी सम्प्रेषण के तरीके

                            सम्प्रेषण के प्रकार 

             (TYPES OF COMMUNICATION)


प्रभावशाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को गत्यात्मक, सक्रिय तथा जीवन्त बनाने के लिये सम्प्रेषण की अनवरता या निरन्तरता आवश्यक होती है। शिक्षण में सम्प्रेषण के कई प्रकार हैं जिन्हें निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे-शाब्दिक तथा अशाब्दिक सम्प्रेषण, शैक्षिक तथा सार्वजनिक सम्प्रेषण आदि।



1. शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)-शाब्दिक सम्प्रेषण में सदैव भाषा का प्रयोग किया जाता है। यह सम्प्रेषण मौखिक (Oral) रूप में वाणी द्वारा तथा लिखित रूप में शब्दों अथवा संकेतो के द्वारा विचार अथवा भावनाओं को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये प्रयोग किया जाता है। शाब्दिक सम्पेषण को पुनः दो प्रकार के सम्प्रेषणों में वर्गीकृत किया जा सकता है-


(a) मौखिक सम्प्रेषण 

(b) लिखित सम्प्रेषण ।


(अ) मौखिक सम्प्रेषण - मौखिक सम्प्रेषण में मौखिक रूप में वाणी द्वारा तथ्यों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इस विधि में संदेश देने वाला तथा संदेश ग्रहण करने वाला, दोनों ही परस्पर आमने-सामने रहते हैं। मौखिक सम्प्रेषण में वार्ता, व्याख्या, परिचर्चा सामूहिक चर्चा, प्रश्नोत्तर तथा कहानी आदि के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है।


(ब) लिखित सम्प्रेषण - इसमें संदेश देने वाले तथा संदेश पाने वाले व्यक्तियों का आमने-सामने होना आवश्यक नहीं है। इसमें संदेश देने वाला लिखित रूप में शब्दों या संकेतों के द्वारा इस प्रकार से संदेश प्रदान करता है कि संदेश प्राप्त करने वाला व्यक्ति (संदेश देने वाले व्यक्ति की भावना को समझ कर) अर्थ लगाते हैं। लिखित संदेशों की सुग्राह्यता के लिये आवश्यक है कि लिखित भाषा सरल, सुगम, स्पष्ट तथा बोधगम्य हो, ताकि संदेश बिना किसी भ्रम के सही रूप में ग्रहणकर्ता ग्रहण कर सके। इसमें सदेश-सूचना, सही ढंग से सही शब्दों के माध्यम से तथा छोटे-छोटे पदों में प्रभावशाली विधि से प्रस्तुत की जाती है।


2. अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-Verbal Communication) - अशाब्दिक सम्प्रेषण में भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसमें वाणी संकेत, चक्षु-सम्पर्क तथा मुख मुद्राओं के प्रयोग एवं स्पर्श-सम्पर्क आदि प्रमुख प्रकार के सम्प्रेषण होते हैं।


(अ) वाणी सम्प्रेषण - वाणी सम्प्रेषण में विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्तिगत रूप से अथवा छोटे-छोटे समूहों में आमने-सामने रहकर वाणी द्वारा की जाती है। उदाहरण के लिये वार्ता के मध्य Yes, Yes ( हाँ हाँ) कहना या बीच-बीच में "हूँ, हूँ" अथवा "हाँ, हूँ" कहते चले जाना। मुँह से सीटी बजाना मुस्कराना बहुत जोर से बोल देना, चीखना घिधियाना, ठहाके लगाना आदि।


(ब) चक्षु सम्पर्क एवं मुख मुद्रायें व्यक्तिगत सम्प्रेषण में चक्षु सम्पर्क तथा मुख मुद्राओं का प्रदर्शन अत्यन्त प्रभावशाली माना जाता है। कक्षा में चक्षु सम्पर्क (Eye to eye contact) के द्वारा शिक्षक अपने छात्रों की मन स्थिति का सही अंदाजा लगाने में सफल होते हैं। संवेगात्मक स्थिति की अभिव्यक्तियों में छात्रों की मुख मुद्रायें बहुत अहम् भूमिका निभाती हैं। मुख मुद्राओं के माध्यम से प्रसन्नता, भय, क्रोध, शोक तथा आश्चर्य आदि का सम्प्रेषण सरलता से किया जाता है बधिरों एवं गूँगे व्यक्तियों के लिये तो यह सम्प्रेषण अत्यन्त उपयोगी है।


(स) स्पर्श सम्पर्क - स्पर्श सम्पर्क में स्पर्श को ही सम्प्रेषण का प्रमुख माध्यम बनाया जाता है। स्पर्श के माध्यम से व्यक्ति अपनी भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ होते हैं। हाथ मिलाते ही पता चल जाता है कि यह दोस्ती का हाथ है या दुश्मनी का यह प्यार का हाथ है अथवा दिखावे के लिये प्रदर्शन का माँ के हाथ का एक स्पर्श मात्र उसके शिशु को बहुत कुछ कह जाता है। प्रशंसा की एक शाबासी प्यार का एक चुम्बन अपने आप बहुत सी भावनाओं संवेदनाओं तथा विचारों की अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है। दृष्टिहीन छात्रों के लिये तो 'स्पर्श' एक बहुत बड़ा वरदान सिद्ध हुआ है।


नीचे सारणी में शाब्दिक तथा अशाब्दिक सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषतायें दी गयी है।


                            सम्प्रेषण के प्रकार      

                (Kinds of Communication)


I. वाणी सम्प्रेषण (Vocal Communication)


II. वाणी के बिना सम्प्रेषण (Non-Vocal Communication)


शाब्दिक सम्प्रेषण (Verbal Communication)

I. बोले जाने वाले शब्द (मौखिक) 

II. लिखित शब्द


अशाब्दिक सम्प्रेषण (Non-Verbal Communication)


I. ठहाका लगाना, चीखना, हाँ, हूँ करना आदि।

II. मुख मुद्रायें हाव-भाव।


प्रभावी सम्प्रेषण के तरीके (TECHNIQUES OF EFFECTIVE COMMUNICATION)


सम्प्रेषण का मुख्य उद्देश्य छात्रों में बाधात्मक अधिगम का विकास करना है। यह तभी सम्भव है जब सम्प्रेषण इतना तीव्र व सटीक हो कि प्रापक (छात्र) उससे प्रभावित होकर अपने व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन कर सके। इसके लिये प्रेषक (अध्यापक) को या जो भी सम्प्रेषित करें उसे निम्नलिखित तरीके अपनाना चाहिये, ताकि सम्प्रेषण प्रभावी होकर अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सके। सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने हेतु निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिये।


1. प्रापक की आवश्यकतानुसार सूचना सम्प्रेषण-  सम्प्रेषण की प्रणाली बनाने हेतु वक्ता को चाहिये कि वह उसी सूचना को सम्प्रेषित करे जिसकी आवश्यकता प्रापक को हो । प्रापक की आवश्यकता को ध्यान में रखकर शिक्षण सामग्री का संयोजन करना चाहिये जैसे तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा के संचालन में प्रापक की आवश्यकता को ध्यान में रखा जाता है, तब सम्प्रेषण प्रभावी होता है।


2. उचित स्वर व भावभंगिमा वक्ता को पाठ्य सामग्री के प्रेषण में प्रभावी प्रेष्य स्वर का होना चाहिये। कक्षा के आकार के अनुसार स्वर का संयोजन व उच्चारण करना चाहिये ताकि कक्षा के सभी छात्र या उपस्थित जन आसानी से सुन सकें। सम्प्रेषण में अंग संचालन व भावभंगिमा का बहुत प्रभाव पड़ता है। बहुत-सी सूचना बिना बोले खेल, अंग संचालन व भावभंगिमा से ही वक्ता द्वारा प्रेषित कर दी • जाती है, जिसे ग्राही-ग्रहण भी कर लेता है।


3. श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग - सम्प्रेषण में सबसे प्रभावी विधि श्रव्य-दृश्य सामग्री का प्रयोग करना है। सम्प्रेषण के समय पाठ्यवस्तु (सूचना) के अनुसार पाठ के बोध व भौतिक तादात्म्य हेतु कुछ भौतिक वस्तुओं का प्रयोग जैसे मॉडल, चित्र आदि सम्प्रेषण को प्रभावी बनाते हैं। कक्षा शिक्षण में इस शिक्षण अधिगम सामग्री (Teaching Learning Material) (टी. एल. एन.) के प्रयोग पर अधिक बल दिया गया है।


4. सम्प्रेषण का यन्त्रीकरण - सम्प्रेषण को प्रभावी बनाने हेतु यंत्रों का प्रयोग किया जाता है जिस ध्वनि विस्तारक यन्त्र (माइक्रोफोन) वीडियो, टी. वी. आदि के प्रयोग से सम्प्रेषण को प्रभावी बनाया जात है। इसमें वक्ता को सम्प्रेषण में तथा प्रापक को ग्रहण करने की उत्सुकता व रुचि बनी रहती है त सम्प्रेषण प्रभावी होता है।


5. प्रापक की सहभागिता प्रभावी सम्प्रेषण हेतु यह आवश्यक है कि सम्प्रेषण में ग्राही सहभागिता सुनिश्चित की जाये। सम्प्रेषण के दौरान बीच-बीच में ग्राही से उसकी प्रतिक्रिया व्यक्त क हेतु प्रेरित किया जाये इससे वक्ता को यह ज्ञात होता रहेगा कि जिस सन्देश को वह सम्प्रेषित कर रह उसे ग्राही ठीक ढंग से ग्रहण कर रहा है या सम्प्रेषण की विधि व मात्रा में परिवर्तन किया जाये। व शिक्षण में छात्रों की सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिये ताकि शिक्षण द्वारा सम्प्रेषित पाठ्यस प्रभावी हो सके।

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