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शिक्षण की नवीन विधाएं (उपागम)।रुचिपूर्ण / आनन्दमयी शिक्षण।सहभागी शिक्षण।दक्षता आधारित शिक्षण

शिक्षण की नवीन विधाएं (उपागम)

हेल्लो दोस्तों आज हम बात करेंगे : रुचि का अर्थ, रुचि की परिभाषाएँ, रुचिपूर्ण / आनन्दमयी शिक्षण क्या है, रुचिपूर्ण शिक्षण के उद्देश्य , सहभागी शिक्षण क्या है, सहभागी शिक्षण का अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य तथा दक्षता आधारित शिक्षण क्या है,दक्षता आधारित शिक्षण का अर्थ,उद्देश्य और सोपान क्या है। 👍


3 : रुचिपूर्ण / आनन्दमयी शिक्षण (INTERESTED BASED TEACHING)


प्राथमिक शिक्षा में परम्परागत शिक्षण विधियों, विद्यालय का अनाकर्षक तथा अरुचिपूर्ण वातावरण तथा क्रियाकलाप विहीन पाठ्यक्रम आदि ने बालक को विद्यालय से दूर कर ह्रास एवं अवरोध जैसी समस्याओं को जन्म दिया है और शिक्षण के सार्वजनीकरण का जो लक्ष्य हमें स्वतन्त्रता प्राप्ति के 10 वर्ष बाद ही प्राप्त कर लेना चाहिये था, वो हम 62 वर्षों में भी प्राप्त नहीं कर पाये। अतः शिक्षा के सार्वजनीकरण एवं उपलब्धि की सम्प्राप्ति सुनिश्चित कराने हेतु शिक्षा विभाग ने वर्ष 1994 में प्राथमिक शिक्षक संघ उत्तर प्रदेश के सहयोग से यूनीसेफ वित्त पोषित रुचिपूर्ण शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है।


रुचि का अर्थ (Meaning of Interest)–वैसे 'रुचि (Interest) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द 'Interesse' से हुई है। स्ट्राउट के अनुसार, जिसका अर्थ है इसके कारण अन्तर होता है।" रॉस ने इसका अर्थ, यह महत्त्वपूर्ण होती है' बताया है। इसमें लगाव होता है। स्पष्ट है कि जिस वस्तु या व्यक्ति प्रति हमारी रुचि होती है, वह हमारे लिये अन्य वस्तु या व्यक्ति से भिन्न होती है तथा उससे हमारा लगाव रहता है। उदाहरण के लिये, एक बालक पढ़ने में रुचि रखता है, तो दूसरा खेलने में और तीसरा संगीत सुनने में इस प्रकार तीनों बच्चों को अलग-अलग बातों से लगाव अर्थात् रुचि है। सामान्यतया रुचि एक मानसिक क्रिया है जिसके आधार पर कोई वस्तु अच्छी या खराब लगती है। 


रुचि की परिभाषाएँ (Definitions of Interest)


रुचि की परिभाषाएँ निम्नानुसार दी जा सकती हैं


ड्रेवर के अनुसार, "रुचि क्रियात्मक रूप में एक मानसिक संस्कार है।" मैक्डूगल के अनुसार, “रुचि छिपा हुआ अवधान रुचि का क्रियात्मक पक्ष है।"


क्रो एण्ड क्रो के अनुसार, "रुचि एक ऐसी प्रेरक शक्ति है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा क्रिया के प्रति ध्यान देने हेतु प्रेरित करती है।"


अवधान की तरह रुचि के भी तीन पहलू है 

जानना, अनुभव करना और इच्छा करना। 

इसी आधार पर रुचि के तीन प्रकार माने गये हैं-ज्ञानात्मक क्रियात्मक और भावात्मक।


रुचिपूर्ण शिक्षण क्या है ? (What is a Interesting Teaching ?)-


रुचिपूर्ण शिक्षण एक “समयबद्ध कार्यक्रम तथा सुविचारित रणनीति है। यह बालकों को शिक्षा देने हेतु आकर्षक एवं बाल केन्द्रित प्रणाली है, जिसमें बालकों को आनन्दित करने वाले क्रियाकलाप एवं विद्यालय में छात्र के प्रति शिक्षक का हेय रहित. मित्र रहित तथा आत्मीय व्यवहार है। यह गीतों कहानियों तथा खेलों द्वारा सरस गतिविधि प्रधान बाल केन्द्रित शिक्षण है। इस प्रकार रुचिपूर्ण शिक्षण एक रणनीति है। एक विधा है जो शिक्षण को रोचक एवं प्रभावी बनाकर शिक्षा के सार्वजनीकरण के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होगी।


रुचिपूर्ण शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Interesting Teaching)- 


रुचिपूर्ण शिक्षा का लक्ष्य ज्ञान एवं व्यवहार की दूरी को समाप्त कर शिक्षा को जीवन से जोड़ना है। कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं


(1) बालकों का नामांकन, ठहराव तथा गुणात्मक शिक्षा की सम्प्राप्ति।


(2) विद्यालय का बाह्य एवं आन्तरिक सौन्दर्यीकरण करके उसे एक आनन्दमयी क्रिया के रूप में विकसित करना


(3) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को क्रियाकलाप आधारित बनाकर प्रत्येक बालक की सुनिश्चित करना


(4) शिक्षक को एक मित्र एवं सहयोगी के में कल्पित करना।


(5) स्वनिर्मित एवं स्थानीय परिवेश में उपलब्ध सामग्री को शिक्षण सहायक सामग्री के रूप में प्रयुक्त करना ।


(6) शिक्षकों की आपसी समझ और सहयोग की भावना को प्रोत्साहित कर उनकी बौद्धिक, सृजनात्मक एवं कलात्मक दक्षताओं का समुचित उपयोग करना। 


रुचिपूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण की प्रक्रिया (Process of Interesting Teaching Training)


रुचिपूर्ण शिक्षण-प्रशिक्षण प्रक्रिया एक सुनियोजित प्रक्रिया है। इस कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन हेतु बेसिक शिक्षा निदेशालय लखनऊ के अधीन राज्य स्तर पर रुचिपूर्ण शिक्षा प्रकोष्ठ की स्थापना की है, जो विभागीय अधिकारियों, यूनीसेफ, जनपदीय टास्क फोर्स, डाइट तथा प्राथमिक शिक्षक संघ के साथ समन्वय स्थापित करते हुए कार्यक्रम का निर्माण, नियोजन तथा प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है।

कार्यक्रम का संचालन यूनीसेफ द्वारा प्रदत्त वित्तीय सहायता के द्वारा किया जाता है। जनपद स्तर पर इस कार्यक्रम का संचालन जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी तथा जिला प्राथमिक शिक्षक संघ द्वारा किया जाता है। विद्यालय स्तर पर ग्राम ग्राम शिक्षा समिति, अभिभावक एवं जन-प्रतिनिधियों की सहभागिता एवं सहयोग लिया जाता है। 


रुचिपूर्ण शिक्षा विधा के सफल क्रियान्वयन हेतु जनपद स्तर पर जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी, जिला विकास अधिकारी एवं पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत अध्यक्ष, जिला पंचायत नगर पंचायत, विकास खण्ड प्रमुख ग्राम प्रधान की सहभागिता एवं सहयोग प्राप्त होता है। 


4. सहभागी शिक्षण (PARTICIPATION TEACHING)


शिक्षण प्रक्रिया का सम्बन्ध प्राचीनकाल से ही दो पक्षों से रहा है। इसमें प्रथम पक्ष शिक्षा प्रदान करने वाला होता है जिसे गुरु के नाम से जानते थे। वर्तमान में उसको शिक्षक के नाम से जानते हैं। दूसरा पक्ष शिक्षा ग्रहण करने वाला होता था जिसे प्राचीनकाल में शिष्य तथा वर्तमान समय में छात्र के नाम से जानते हैं। इन दोनों पक्षों के मध्य ही शिक्षण व्यवस्था के तानेबाने को बुना जाता था। इन दोनो पक्षों को शिक्षण प्रक्रिया के लिये अनिवार्य माना जाता था। किसी भी एक के अभाव में शिक्षण की प्रक्रिया पूर्ण नहीं मानी जाती थी। शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये प्राचीनकाल में शिक्षकों तथा शिक्षार्थियों के लिये विभिन्न प्रकार की आचार संहिताएँ बनायी जाती थीं जिससे कि शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली बन सके।


वर्तमान समय में इस प्रक्रिया को सहभागी शिक्षण के रूप में जाना गया अर्थात् सहभागी शिक्षण की अवधारणा का उदय हुआ जिसमें यह निश्चित किया गया कि शिक्षण प्रक्रिया को उपयोगी एवं प्रभावशाली बनाने के लिये शिक्षक एवं छात्र दोनों की ही सहभागिता आवश्यक है। इसके विपरीत स्थिति में शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली सिद्ध नहीं होगी।


सहभागी शिक्षण का अर्थ (Meaning of Participation Teaching)


सहभागी शिक्षण का सामान्य अर्थ शिक्षक एवं शिक्षार्थी की सहभागिता से लिया जाता है। शिक्षाशास्त्रियों का तर्क है कि शिक्षक एवं छात्र दोनों ही शिक्षण प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं। इसलिये वह शिक्षण प्रक्रिया सफल होगी जिसमें दोनों समान रूप से भाग लें। शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थी भी उतना ही महत्त्वपूर्ण बिन्दु है जितना कि शिक्षक। इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। एक शिक्षक कक्षा में शिक्षण कार्य कर रहा है अर्थात् वह कक्षा में पूर्ण तल्लीनता से शिक्षण कार्य कर रहा है। वह छात्रों से प्रश्न पूछ कर, श्यामपट्ट पर लेखन करवाकर एवं पृष्ठ पोषण प्रदान करके उनका सहयोग प्राप्त कर रहा है। इस प्रकार दोनों पक्ष शिक्षण प्रक्रिया में एक-दूसरे को सहयोग दे रहे हैं। शिक्षक प्रश्न पूछता है कि छात्र उत्तर देता है। शिक्षक निर्देश देता है, छात्र पालन करता है। सहभागी शिक्षण को विद्वानों ने निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है


प्रो. श्रीकृष्ण दुबे के अनुसार, "सहभागी शिक्षण का आशय उस शिक्षण प्रक्रिया से है जिसमें शिक्षक एवं शिक्षार्थी की पूर्ण सहभागिता निश्चित होती है तथा सहभागिता द्वारा ही शिक्षण प्रक्रिया प्रभावशाली एवं उद्देश्यपूर्ण बनती है।"


श्रीमती आर. के. शर्मा के अनुसार, "जिस शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षार्थी का सहयोग प्राप्त करके उसे यह अनुभव कराया जाता है कि वह इस शिक्षण प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण पक्ष है, सहभागी शिक्षण कहलाता है।"

 

सहभागी शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Participation Teaching)

सहभागी शिक्षण की परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर इसकी प्रमुख विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं जो निम्नलिखित हैं


(1) सहभागी शिक्षण में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दो पक्षों को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। 


(2) शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों की ही सहभागिता को अनिवार्य माना जाता है।


(3) यह प्रक्रिया वर्तमान समय की श्रेष्ठ शिक्षण प्रक्रियाओं में से एक है क्योंकि इसमें छात्र पूर्णतः क्रियाशील होते हैं।


(4) यह प्रक्रिया सहयोग एवं सहभागिता पर आधारित है। 


(5) सहभागी शिक्षण प्रक्रिया से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया प्रभावशाली एवं बोधगम्य रूप में प्रस्तुत की जा सकती है।


सहभागी शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Participation Teaching)


सहभागी शिक्षण वर्तमान समय की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि इस प्रक्रिया से शिक्षण के समस्त पक्ष लाभान्वित होते हैं। सहभागी शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं 


(1) शिक्षक एवं छात्र दोनों को क्रियाशील स्थिति में रखना सहभागी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है। 


(2) छात्रों को स्थायी ज्ञान प्रदान करना सहभागी शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य है क्योंकि इसमें छात्र क्रियाशील रहता है।


(3) छात्रों को उनकी महत्त्वपूर्ण स्थिति का ज्ञान कराने के लिये आवश्यक है। 


(4) सहभागी शिक्षण के माध्यम से कक्षा के नीरस वातावरण को दूर किया जा सकता है।



5 : दक्षता आधारित शिक्षण (EFFICIENCY BASED TEACHING)


> वर्तमान युग प्रतिस्पर्द्धा एवं प्रतियोगिता का युग है। बालक को ज्ञान प्राप्ति के साथ-ही-साथ समाज में विशिष्ट स्थान बनाने के लिए किसी क्षेत्र में विशिष्ट दक्षताएँ प्राप्त करनी होती हैं। दक्षताएँ—भौतिक एवं मानसिक दोनों क्षेत्रों में हो सकती हैं। छात्र को चिन्तन, समस्या समाधान, शब्द कौशल, कविता लेखन, गणितीय गणनाएँ, वाचन भाषण, नृत्य तथा संगीत आदि में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए अथवा कम्प्यूटर, बागवानी, डिजायनिंग, भवन निर्माण, कारपेन्टरी, टंकण तथा चित्रकला आशुलिपि जैसे कार्यों में दक्षता प्राप्त करनी चाहिए क्योंकि दक्षता प्राप्त करने के बाद ही वह में रहते हुए सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है। यदि व्यक्ति के पास कोई दक्षता नहीं है तो उसका व्यक्तित्व एक पक्षीय बन कर रह जाता है।


 दक्षता आधारित शिक्षण का अर्थ (Meaning of Efficiency Based Teaching)


दक्षता आधारित शिक्षण से तात्पर्य है दक्ष अध्यापकों द्वारा ऐसा शिक्षण जो छात्रों को ज्ञान प्राप्ति में दक्ष बना सके। दक्षताओं का विकास तभी सम्भव है जब शिक्षार्थी किसी ज्ञान की इकाई को इस सीमा तक सीख लें कि वह उसके जीवन का अंग बन जाए। 


न्यूनतम गतिविधि के द्वारा शिक्षक बच्चों में निम्नलिखित दक्षताएँ विकसित करता है


1. संख्याओं की धारणा,


2. संख्याओं की पहचान,


3. संख्याओं को लिखना,


4. संख्याओं को लिखने का निश्चित क्रम


इसी प्रकार यदि शिक्षक कक्षा-2 के बच्चों को हिन्दी भाषा में कविता सिखाना चाहता है तो वह उचित लय हाव-भाव उतार चढ़ाव आदि के साथ कविता को सुनाकर अनुकरण वाचन करा करके, कठिन शब्दों का उच्चारणाभ्यास कराके, बच्चों से दूसरी कविताएँ सुनाने के द्वारा उनकी सहभागिता प्राप्त करके. टी. एल. एम. अन्य सामग्रियों के द्वारा बच्चों में भाषा सम्बन्धी दक्षताओं का विकास कर सकते हैं। 

भाषा सम्बन्धी दक्षताऐं है


1. सुनना,


2. बोलना,


3. पढ़ना,


4. लिखना।


दक्षता आधारित शिक्षण के उद्देश्य (Aims of Efficiency Based Teaching) 


1. छात्रों को दक्ष बनाना,


2. प्रतिस्पर्द्धा की भावना विकसित करना,


3. ज्ञान को स्थायित्व प्रदान करना,


4. शिक्षण के प्रति रुचि विकसित करना, 5. सहयोग की भावना विकसित करना।


दक्षता आधारित शिक्षण विधि के सोपान (Steps of Efficiency Based Teaching Method) 

दक्षता आधारित शिक्षण विधि के निम्नलिखित सोपान है


1. पूर्व तैयारी–उद्देश्य निर्धारण, सहायक सामग्री।


2. विषयवस्तु का प्रस्तुतीकरण


3. नियम निर्णय का समन्वयीकरण, सूचीकरण।


4. अभ्यास


5. अभ्यास कार्य के मध्य की गयी त्रुटियों का शुद्धिकरण


6. प्रयोग।


जब छात्र अभ्यास कार्य के मध्य त्रुटियाँ करना बन्द कर दें तो दक्षता विकास हेतु पुनः अभ्यासात्मक प्रयोग कराया जाये और इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखा जाये जब तक कि छात्र वाछित दक्षता प्राप्त नहीं कर ले।

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