व्याख्यान प्रविधि (LECTURE TECHNIQUE)।व्याख्या के प्रकार।व्याख्यान प्रविधि के लाभ।व्याख्यान प्रविधि के दोष
4. व्याख्यान प्रविधि (LECTURE TECHNIQUE)
निर्देशन की सबसे पुरानी युक्ति व्याख्यान ही है। जिस काल में पुस्तकें उपलब्ध नहीं थीं तथा हस्तलिखित सामग्री भी उपलब्ध नहीं थी तब व्याख्यान से ही शिक्षण कार्य होता था।
आज व्याख्यान का रूप कॉलेजों में काफी विस्तृत रूप से दिखाई देता है। उच्च कक्षाओं में सारे विद्यार्थी सिर्फ विषय के सीमित ज्ञान से ही सन्तुष्ट नहीं होते, व्याख्यान देना ही उनके लिये पर्याप्त नहीं व्याख्यान के साथ आवश्यक है कि उनकी जिज्ञासा के लिये प्रश्न किये जाये तथा श्रव्य-दृश्य सामग्रियों का प्रयोग किया जाये।
व्याख्यान से अभिप्राय होता है शिक्षक द्वारा किसी विषय की बाल की खाल निकाल देना अर्थात विषय-वस्तु की गहराई तक उसका विश्लेषण करके छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना। यह परिचर्चा का विस्तृत अंश है।
यह माना जाता है कि जो अध्यापक जितना अच्छा व्याख्यान दे सकता है उसकी कक्षा उतनी ही भरी रहती है। व्याख्यान शिक्षक की मौखिक अभिव्यक्ति होती है। इसमें शिक्षक विषय पर अधिकार रखता हुआ क्रमबद्ध अपने ज्ञान को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
आधुनिक शिक्षाशास्त्री व्याख्यान युक्ति को परम्परागत, एकमार्गीय, वैज्ञानिकता से दूर विधि मानते है। इसमें शिक्षक की भूमिका को ही सर्वोपरि व प्रभावयुक्त माना जाता है। अतः यह कहा जा सकता है कि व्याख्यान उच्चतम रूप से औपचारिक भाव से, उच्चतम अनौपचारिक भाव तक पहुँचने की प्रक्रिया है।
"It is desirable to think of lectures on a continum, extending from the highly formal to the highly informal.
-Leonard H. Clark and Irving S. Star : Secondary School Teaching Method
व्याख्या के प्रकार
1. औपचारिक (Formal)
(कक्षा में विषय की सीमा में बँधा हुआ)
2. अनौपचारिक (Informal)
(कक्षागत परिस्थितियों की सीमा से दूर)
एच. क्लार्क और इरविंग एस. स्टार्स के अनुसार, व्याख्यान विधि में औपचारिक से अनौपचारिक व्याख्यान तक पहुँच जाता है इसमें कुछ अन्य तथ्यों का भी प्रयोग होता है।
• व्याख्यान में दृष्टान्तों का प्रयोग उसे रोचक बनाता है। प्रदर्शन युक्त सामग्री के प्रवेश से यह सिर्फ मौखिक विधि ही न रहकर दृश्य विधि हो जाती है।
बीच-बीच में पाठ्य सामग्री को स्पष्ट करने के लिए उद्धरणों को प्रस्तुत किया जाता है। शिक्षक विभिन्न तरीकों के माध्यम से फिर संशोधित रूप में व्याख्यान को पुनः छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है।
अनौपचारिक रूप में विषय पर चर्चा ही इसकी अन्तिम परिणित होती है। अनौपचारिक संक्षिप्त व्याख्या के माध्यम से शिक्षक व्याख्यान की सक्षिप्त रूपरेखा छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करता है। इस प्रकार विभिन्न माध्यमों का सहारा लेते हुए शिक्षक कक्षा में व्याख्यान विधि से छात्रों को ज्ञान देता है।
व्याख्यान प्रविधि के लाभ (Advantages of Lecture Technique)
1. विषय का मौखिक चित्रण तथा प्रस्तुतीकरण उचित रूप में होता है और विषय के क्षेत्र की सामान्य रूपरेखा भी प्राप्त की जा सकती है।
2. प्रभावात्मक तरीके से संक्षिप्त समय में ही बहुत से तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
3. जब व्याख्यानों को कई खण्डों में क्रमबद्धता के साथ प्रस्तुत किया जाता है तो विषय में तथ्यों
की रुचि अच्छी तरह से प्रेरित की जा सकती है।
4. इसमें क्योंकि रुचि के कारण ध्यान केन्द्रित किया जाता है अतः ध्यान काफी समय तक सुरक्षित और स्थायी बनाया जा सकता है।
5. किताबों के द्वारा की गयी प्रस्तुति से कहे हुए शब्द अधिक प्रभावशाली होते हैं। किताबों की कमी को पूरा करता है।
6. सभी छात्रों के लिए भाषा उपयुक्त होनी चाहिये ।
7. यह समय की दृष्टि से भी उपयोगी है। शिक्षक थोड़े समय में अधिक पाठ्यक्रम पढ़ा सकता है।
8. शिक्षक सक्रिय रहता है।
9. एक ही समय में छात्रों के बड़े समूह को शिक्षित किया जा सकता है।
10. विषय का आलोचनात्मक व तार्किक क्रम सदैव बना रहता है।
11. यह शिक्षक तथा छात्र दोनों को विषय के अध्ययन की प्रगति के विषय में सन्तुष्टि प्रदान करती है।
12. यह विधि उच्च कक्षाओं के लिये उपयोगी होती है।
13. यह समय की दृष्टि से भी उपयोगी है। शिक्षक थोड़े समय में अधिक पाठ्यक्रम पढ़ा सकता है।
व्याख्यान प्रविधि के दोष (Demerits of Lecture Technique)
1. छोटी कक्षाओं की दृष्टि से अमनोवैज्ञानिक विधि।
2. छात्रों में मानसिक तार्किक व आलोचनात्मक शक्ति के विकास की कमी रहती है।
3. इस प्रकार से प्रदत्त ज्ञान अस्थायी होता है।
4. विज्ञान के विषयों को इस विधि से पढ़ाना प्रभावकारी नहीं होता क्योंकि इसमें शिक्षक सम्पूर्ण सूचनाएँ भली-भाँति प्रस्तुत नहीं कर पाता।
5. विषय का प्रयोगात्मक पक्ष उपेक्षित रहता है।
6. इसमें छात्र पूर्णतया निष्क्रिय रहते हैं।
7. एक बार तारतम्य टूट जाने पर ज्ञान खण्डित व अधूरा ही रह जाता है।
8. व्याख्यान विधि में सभी ज्ञानेन्द्रियाँ सक्रिय नहीं होती हैं इससे ज्ञान स्थायी भी नहीं हो पाता।
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