7 : निरीक्षण एवं अवलोकन प्रविधि (OBSERVATION TECHNIQUE)
किसी वस्तु, स्थान एवं क्रिया को सावधानी से देखने एवं समझने की क्रिया को अवलोकन व उस पर सार्थक टिप्पणी करने को निरीक्षण करते हैं। दोनों प्रविधियाँ एक साथ ही चलती हैं।
इस प्रविधि द्वारा किसी वस्तु स्थान एवं क्रिया का स्पष्ट स्थायी ज्ञान बड़ी सरलता से दिया जा सकता है। प्रत्यक्ष ज्ञान के लिये जितना उपयोगी उनसे सम्बन्धित वस्तु अथवा क्रियाओं का निरीक्षण होता है, उतनी अधिक उपयोगी अन्य कोई क्रिया नहीं हो सकती।
प्राथमिक स्तर पर विषयवार निरीक्षण / अवलोकन इस प्रकार हो सकता है-गणित के लिये बाग में पेड़ों की गणना, फलों की गणना, भूगोल में नदी, झरना, पर्वत आदि का भ्रमण, कृषि/बागवानी में खेती का निरीक्षण, सिंचाई, बुवाई, कटाई के साधनों को देखना। कला में भवन आदि देखना।
किसी वस्तु, आकार को उसमें से कुछ सीखने की दृष्टि से खोजपूर्ण व तर्कपूर्ण दृष्टि से देखना निरीक्षण व अवलोकन कहलाता है।
निरीक्षण प्रविधि की सावधानी :
इस प्रविधि हेतु निम्नलिखित सावधानी बरतनी चाहिये।
1. निरीक्षण हेतु पूर्व योजना बनानी चाहिये।
2. निरीक्षण के समय क्या-क्या देखना है तथा शिक्षा ग्रहण करने (पाठ्यक्रमानुसार) में उनकी क्या उपयोगिता है। यह पहले से लिख लेना चाहिये।
3. निरीक्षण / अवलोकन के समय शिक्षक को साथ-साथ रहना चाहिये।
4. बच्चों को निरीक्षण करने को स्वतन्त्र अवसर दिया जाना चाहिये।
5. निरीक्षण के बाद बच्चों से तत्सम्बन्धी आख्या तैयार करानी चाहिये।
निरीक्षण के प्रकार :
निरीक्षण निम्नलिखित प्रकार (उद्देश्यपरक) होते हैं
1. अधिगम उन्मुखी – जब छात्र किसी वस्तु, व्यवस्था, स्थान का अवलोकन किसी नये ज्ञान के सीखने के लिये करते हैं, उसकी बनावट, तकनीक, प्रबन्धन, उत्सर्जन आदि में प्रयुक्त ज्ञान व तकनीक का अध्ययन करते हैं और उससे किसी नये ज्ञान का सृजन करते हैं तो निरीक्षण अधिगमोन्मुखी होता।
2. छिद्रान्वेषण – जब किसी वस्तु व्यवस्था में त्रुटि या कमी खोजने का प्रयास करते हैं उसे छिद्रान्वेषी अवलोकन कहते हैं। प्रायः किसी व्यवस्था के खराब होने, दुर्घटना होने पर शिक्षक ऐसे निरीक्षण हेतु प्रेरित करता है। जैसे किसी स्थान पर भू-चाल या ज्वालामुखी के फूटने पर भूगोल के छात्रों हेतु इस प्रकार की शिक्षण प्रविधि अपनायी जाती है, जो घटना के कारणों का अध्यापन करके उसके परिणाम को प्रस्तुत करती है।
3. उदासी - अवलोकन इसे तटस्थ अवलोकन भी कहते हैं, जिसमें छात्र के सम्मुख शिक्षण हेतु जो विषय-वस्तु प्रस्तुत की जाती है, कोई स्थान आदि दिखाया जाता है, उसको सामान्य रूप से देखकर छात्र उसके बाहरी स्वरूप से ही सन्तुष्ट हो जाता है।
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