शिक्षण नवीन विधाएँ (उपागम) [New Approaches of Teaching]
हेल्लो दोस्तों आज हम बात करेंगे शिक्षण नवीन विधाएँ (उपागम) से सम्बन्धित बाल-केन्द्रित शिक्षण उपागम क्या है , इसकी विशेषताएँ , बाल-केंन्द्रित शिक्षण का महत्त्व तथा क्रिया/गतिविधि आधारित शिक्षण क्या है ,गतिविधियों पर आधारित शिक्षण विधि , गतिविधि आधारित शिक्षण विधि (क्रियापरक विधि) के प्रकार , गतिविधि आधारित शिक्षण विधि (क्रियापरक विधि) की विशेषताएँ। आदि के बारे में विस्तार से 👍
1. बाल-केन्द्रित शिक्षण उपागम (CHILD-CENTRED TEACHING APPROACH)
प्राचीनकाल की शिक्षा शिक्षक केन्द्रित शिक्षा थी। शिक्षक जैसे चाहता था उसी प्रकार से शिक्षा देता था। इसमें बालक की अपेक्षा पाठ्यक्रम को अधिक महत्त्व दिया जाता था परन्तु शिक्षा में मनोविज्ञान के प्रवेश से बालक को महत्त्व दिया जाने लगा है। अब बालक की रुचियों, रुझानों तथा क्षमताओं को महत्त्व दिया जाने लगा है। पाठ्यक्रम के निर्धारण में भी इन बातों का ध्यान रखा जाता है। बाल-केन्द्रित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है।
बाल-केन्द्रित शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Child-Centred Teaching) बाल केन्द्रित शिक्षण की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) मनोवैज्ञानिक शिक्षण—यह शिक्षण पूर्ण रूप से मनोवैज्ञानिक है।
(2) बाल प्रधान शिक्षण- इस शिक्षण की प्रमुख विशेषता बालक की प्रधानता है।
(3) रुचियों और क्षमताओं का विकास इसमें बालक की रुचियों, प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं को ध्यान में रखकर ही सम्पूर्ण शिक्षण का आयोजन किया जाता है।
(4) सरल और रुचिपूर्ण शिक्षण–यह शिक्षण सरल एवं रुचिपूर्ण है। इसमें बालक सरल ढंग से नवीन ज्ञान रुचिपूर्ण तरीके से अर्जित करता है।
(5) आत्माभिव्यक्ति के अवसर इस शिक्षण में बालकों को आत्माभिव्यक्ति के अवसर प्राप्त होते हैं।
(6) व्यावहारिक तथा सामाजिक यह शिक्षण बालक को व्यावहारिकता और सामाजिकता की शिक्षा प्रदान करता है।
(7) ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण पर बल इस शिक्षण में ज्ञानेन्द्रिय प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया जाता है जिससे बालक के मस्तिष्क का विकास होता है।
बाल-केंन्द्रित शिक्षण का महत्त्व (Importance of Child-Centred Teaching)
(1) इस शिक्षण में शिक्षण का केन्द्र बिन्दु बालक होता है। इस विधि के अन्तर्गत बालक रुचियों, क्षमताओं और प्रवृत्तियों को ध्यान में रखकर शिक्षण प्रदान किया जाता है।
(2) इसमें व्यक्तिगत शिक्षण को महत्त्व दिया जाता है।
(3) इसमें बालक का व्यक्तिगत रूप से निरीक्षण कर उसकी कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया जाता है।
(4) इसमें स्वाभाविक रूप से अनुशासन स्थापित होता है।
(5) बालक को स्वावलम्बी बनाकर उसमें स्वतन्त्रता की भावना उत्पन्न की जाती है।
(6) बालक चुने हुए साधनों में से अपनी इच्छानुसार किसी भी साधन का चुनाव कर सकता है।
(7) बालक द्वारा स्वयं किये गये कार्य से मानसिक सन्तुष्टि और शान्ति का अनुभव होता है।
(8) इससे उसे शारीरिक और मानसिक विकास में सहायता मिलती है।
2 : क्रिया/गतिविधि आधारित शिक्षण (ACTIVITY BASED TEACHING)
परम्परागत शिक्षण प्रणाली में क्रियापरक शिक्षण पर लेशमात्र ध्यान नहीं दिया जाता था तथा अध्यापक द्वारा छात्र के मस्तिष्क में पुस्तकीय ज्ञान को ढूंस-ठूसकर भरने का प्रयास किया जाता था। इस शिक्षण विधि का कॉमेनियस ने विरोध किया तथा छात्र क्रियाशीलता के सिद्धान्त पर विशेष बल दिया। रूसो को इस सिद्धान्त का प्रवर्तक कहा जाता है। रूसो का कथन है कि "यदि आप अपने छात्र को बुद्धि का विकास करना चाहते हैं तो उस शक्ति का विकास करना चाहिये, जिसे इसको नियन्त्रित करना है। उसको बुद्धिमान और तर्कपूर्ण बनाने के लिये उसे हृष्ट-पुष्ट और स्वस्थ बनाना होगा।"
क्रियापरक विधि का अर्थ (Meaning of Activity Method) क्रियापरक विधि का अर्थ है- छात्र का अपनी स्वयं की क्रिया के द्वारा ज्ञान प्राप्त करना। छात्र की क्रिया से तात्पर्य है कि जिस क्रिया को छात्र किसी उद्देश्य से पूर्ण करता है और उसको पूर्ण करने में उसका शरीर और मस्तिष्क दोनो क्रियाशील रहते हैं। इस आधार पर यह ज्ञात होता है कि छात्र की क्रियाएँ दो प्रकार की होती है शारीरिक तथा मानसिक। चहल कदमी, आत्मक्रिया एवं आत्म अभिव्यक्ति इसके प्रमुख अंग माने जाते हैं।
क्रियात्मक विधि का प्रयोग पाठ्यक्रम के सभी विषयों के शिक्षण के लिये किया जा सकता है। इस विधि में सभी बच्चे क्रियाशील होकर अधिगम लक्ष्यों की ओर अग्रसर होते हैं। इस विधि के अनुप्रयोग समय को भी ध्यान में रखना होगा। इसमें बालकों द्वारा किये गये कार्य में शीघ्रता होनी चाहिये तथा सब बालकों को एक समय में एक ही क्रिया करनी चाहिये जैसे यदि वे मॉडल बना रहे हैं, तो सबको एक है। प्रकार का मॉडल बनाना चाहिये।
क्रियात्मक विधि की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यह विधि विषय-केन्द्रित (Subject centred) और शिक्षण-केन्द्रित (Teacher centred) न होकर बाल-केन्द्रित (Child centred) है। यह विधि बालक को क्रियाशील बनाकर पाठ्य-विषय में उसकी रुचि उत्पन्न करती है।
गतिविधियों पर आधारित शिक्षण विधि (Activity Based Teaching Method)
इस विधि में विभिन्न गतिविधियों तथा क्रियाकलापों के अनुप्रयोग से शिक्षण कार्य सम्पन्न किया जाता है। गतिविधियों के अनुप्रयोग से शिक्षण क्रिया सरस-रुचिकर तथा बोधगम्य हो जाती है। इन गतिविधियों तथा क्रियाकलापों को शिक्षक द्वारा निर्मित करना पड़ता है तथा इसमें कक्षा के सभी छात्रों को समाहित करते हैं।
गतिविधियाँ विभिन्न प्रकार की हो सकती है
1. छात्रों को कई समूहों में बाँटकर विषय से सम्बन्धित क्विज कराकर ।
2. समूह चर्चा के द्वारा।
3. स्थलीय भ्रमण कराकर ।
4. प्रयोग कराकर
5. चार्ट या मॉडल दिखाकर लिखने को कहकर
6. अवलोकन कराकर ।
7. सूची बनवाकर।
8. चार्ट बनवाकर आदि।
वास्तव में गतिविधियों की कोई निश्चित सूची नहीं होती। शिक्षक अपने विवेक से इन गतिविधियों को आयोजित करता है।
गतिविधि आधारित शिक्षण विधि (क्रियापरक विधि) के प्रकार (Types of Activity based Teaching Method)
क्रियापरक विधियों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
(1) अनुभव प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाएँ अनुभव प्राप्त करने वाली क्रियाओं का उद्देश्य है कि बालकों द्वारा नये अनुभव प्राप्त करना। वे ऐसा किसी स्थान का भ्रमण करके किसी औद्योगिक संस्थान को देखकर या किसी वस्तु का निरीक्षण करके कर सकते हैं।
(2) ज्ञान प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाएँ इन क्रियाओं का मूल उद्देश्य है कि छात्रों द्वारा अनेक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करना जैसे बालक इस तथ्य का ज्ञान कर सकते हैं कि उनके घरों में प्रयोग होने वाली वस्तुएँ कहाँ-कहाँ से प्राप्त हो सकती है।
(3) ज्ञान प्रदान से सम्बन्धित क्रियाएँ इन क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य है कि छात्र किस प्रकार से अर्जित ज्ञान को व्यक्त कर सकता है। वे किसी विषय पर वाद-विवाद करके किसी स्थान का मानचित्र बनाकर या उद्योगों का वर्गीकरण करके कर सकते हैं।
गतिविधि आधारित शिक्षण विधि (क्रियापरक विधि) की विशेषताएँ (Characteristics of Activity based Teaching Method)
गतिविधि आधारित शिक्षण विधि (क्रियापरक विधि) की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
(1) यह विधि छात्र को करके सीखने (Learning by doing) का अवसर प्रदान करती है जिससे छात्र ज्ञानार्जन करता है।
(2) यह विधि छात्र को कार्य करने में इतना निमग्न कर देती है कि उसे ज्ञानार्जन करते समय थकान का अनुभव नहीं होता है।
(3) यह विधि छात्र को स्वयं ज्ञान और अनुभव प्राप्ति का अवसर प्रदान करती है।
(4) यह विधि शिक्षक-केन्द्रित न होकर बाल केन्द्रित होती है।
(5) इस विधि के द्वारा छात्र क्रियाशील होकर पाठ्य विषय में रुचि अनुभव करता है।
(6) यह विधि छात्रों को अनेक वस्तुओं को बनाने का प्रशिक्षण प्रदान कर उनकी व्यावसायिक कुशलता को बढ़ाती है।
(7) यह विधि क्रिया के सिद्धान्त को केवल विषय के रूप में ही नहीं वरन एक शिक्षण विधि के रूप में भी प्रयोग करती है।
(8) यह विधि पाठ्य-पुस्तकों को महत्त्व न देकर वस्तुओं के संग्रह, पर्यटन, अवलोकन और परीक्षण को महत्त्व देती है।
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