हेल्लो दोस्तों आज हम सूक्ष्म शिक्षण एवं शिक्षण के आधारभूत कौशल के अंतर्गत सूक्ष्म शिक्षण चक्र के प्रकार,सूक्ष्म शिक्षण में प्रयुक्त प्रविधियां,सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान,सूक्ष्म शिक्षण के लाभ सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ,सूक्ष्म शिक्षण के उपयोग। आदि के बारे में विस्तार से :
3: सूक्ष्म शिक्षण चक्र के प्रकार (TYPES OF MICRO TEACHING CYCLE)
उपर्युक्त विवेचित प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक छात्राध्यापक शिक्षण कौशल विशेष में निपुणता (Mastery) न प्राप्त कर ले। शिक्षण, पृष्ठ-पोषण पुनः पाठ नियोजन, पुनः शिक्षण तथा पुनः पृष्ठ-पोषण के पाँचों पदक्रमों को मिलाकर एक चक्र-सा बन जाता है जो तब तक चलता रहता है जब तक उसे शिक्षण कौशल विशेष पर पूर्ण अधिकार (निपुणता) न प्राप्त हो जाये। यही चक्र, सूक्ष्म शिक्षण-चक्र कहलाता है।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर सूक्ष्म शिक्षण चक्र के विभिन्न पद चित्र के द्वारा नीचे प्रदर्शित किये जा रहे हैं
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया का संक्षिप्त वर्णन
(BRIEF DESCRIPTION OF MICRO TEACHING PROCESS)
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में सर्वप्रथम छात्राध्यापकों के किसी शिक्षण कौशल के विषय में भलीभाँति बताया जाता है फिर प्रदर्शन द्वारा उसे स्पष्ट किया जाता है। छात्राध्यापक प्रतिमानों के माध्यम से उस कौशल का निरीक्षण करते हैं और वार्तालाप द्वारा विशिष्ट जानकारी प्राप्त करते हैं। इसके पश्चात् पाठ तैयार करके कक्षा में पढ़ाया जाता है, जिसकी Video या Audio Tap-recorder द्वारा Recording की जाती है। पाठ समाप्त होने पर निरीक्षक के साथ खुला वार्तालाप किया जाता है। इस प्रकार छात्राध्यापक का मूल्यांकन भी किया जाता है और पाठ को सुधारने के लिए सुझाव दिये जाते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण में प्रयुक्त प्रविधियाँ
सूक्ष्म शिक्षण का विकास स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में हुआ था। वहाँ पर अग्रांकित प्रविधि प्रयोग की गयी थी
शिक्षण चरण 5 मिनट
मूल्यांकन चरण 10 मिनट
पुनः पाठ निर्माण चरण 15 मिनट
पुनः शिक्षण चरण 5 मिनट
पुनः मूल्यांकन चरण 10 मिनट
कुल समय 45 मिनट
उल्स्टर विश्वविद्यालय में निम्नांकित प्रविधि का प्रयोग किया गया
शिक्षण चरण 15 मिनट
मूल्यांकन चरण 7 मिनट
पुनः पाठ निर्माण चरण 8 मिनट
पुनः शिक्षण चरण 15 मिनट
पुनः मूल्यांकन चरण 15 मिनट
कुल समय 60 मिनट
डी. ए. वी. कॉलेज, देहरादून में कई प्रयोगों के पश्चात् निम्नांकित प्रविधि मिश्रा, गोस्वामी तथा कुलश्रेष्ठ ने अपनाई और इसे अधिक उपादेय पाया
शिक्षण चरण 6 मिनट
प्रथम मूल्यांकन चरण 6 मिनट
द्वितीय मूल्यांकन (वास्तविक मूल्यांकन) 4 मिनट
पुनः पाठ निर्माण चरण 7 मिनट
पुनः शिक्षण चरण 6 मिनट
पुनः मूल्याकन चरण 6 मिनट
कुल समय 35 मिनट
सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान
(INDIAN MODEL OF MICRO TEACHING)
भारतवर्ष में विशेष रूप से NCERT तथा CASE एवं इन्दौर विश्वविद्यालय में किये गये प्रयासों के फलस्वरूप सूक्ष्म शिक्षण का भारतीय प्रतिमान विकसित किया गया। इसकी निम्नलिखित विशेषताये है
(1) इसमें महँगी सामग्री (जैसे वीडियो, क्लोज्ड सर्किट टी वी आदि) के स्थान पर कथन तथा चर्चा विधि का प्रयोग किया गया है।
(2) विदेशी निरीक्षण तथा प्रतिपुष्टि की महँगी सामग्री के स्थान पर इसमें प्रशिक्षित निरीक्षकों द्वारा निरीक्षण तथा प्रतिपुष्टि को स्थान दिया गया है।
(3) इसमें सूक्ष्म शिक्षण सत्र अनुरूपित (Simulated) परिस्थितियों में सम्पन्न किया जाता है। जिसमें साथी बी. एड. प्रशिक्षणार्थियों की मुख्य भूमिका होती है।
(4) यह प्रतिमान कम खर्चीला तथा ज्यादा लचीला होता है।
(5) भारतीय प्रतिमान में कौशलों के समन्वय करने को भी समुचित स्थान दिया गया है।
सूक्ष्म शिक्षण के लाभ (ADVANTAGES OF MICRO TEACHING)
सूक्ष्म शिक्षण के प्रशिक्षण विधि के रूप में अनेक लाभ हैं
(1) सूक्ष्म शिक्षण से शिक्षण प्रक्रिया सरल होती है।
(2) छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यतानुसार 'शिक्षण-कौशलों' पर अपना ध्यान केन्द्रित करते उन्हें विकसित करता है और सीखने प्रयत्न करता है।
(3) प्रतिपुष्टि (Feedback) सम्पूर्ण तथा सभी दृष्टिकोणों को अंगीकार करती है।
(4) छात्राध्यापक का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।
(5) मूल्यांकन में छात्राध्यापक को अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार होता है और मूल्यांकन चरण में उसे सक्रिय रखा जाता है।
(6) निरीक्षक, छात्राध्यापक के परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।
(7) यह कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम करता है।
(8) यह विधि छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास जागृत करती है।
(9) यह शिक्षण विधि छात्राध्यापक को कम समय में अधिक सिखाती है।
सूक्ष्म शिक्षण की सीमाएँ
(LIMITATIONS OF MICRO TEACHING)
सूक्ष्म शिक्षण यद्यपि प्रशिक्षण-विधि के रूप में अपने अन्दर अनेक अच्छे बिन्दुओं को समेटे हुए हैं।
फिर भी इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं, जैसे
(1) यह सीमा से ज्यादा नियंत्रित तथा संकुचित शिक्षण की ओर ले जाती है।
(2) यह शिक्षण को कक्षा-कक्षगत शिक्षण से दूर ले जाती है।
(3) एक समय में एक ही शिक्षण-कौशल का विकास करती है। फलस्वरूप बाद में उनमें एकीकरण करना कठिन होने लगता है।
(4) इसमें समय अधिक लगता है।
(5) इसमें प्रतिपुष्टि एकदम छात्राध्यापक को मिलना मुश्किल होता है।
(6) छात्राध्यापक को शिक्षण कौशल दक्षता प्राप्त करने के लिए उचित प्रेरणा का अभाव रहता है।
(7) यह शिक्षण Diagnostic तथा Remedial Work पर ध्यान नहीं देता।
उपर्युक्त सीमाओं के कारण सूक्ष्म शिक्षण विधि में अनेक परिवर्तन तथा सुधार किये जा रहे हैं। परिसूक्ष्म शिक्षण (Mini-teaching) इसका एक उदाहरण है।
सूक्ष्म शिक्षण के उपयोग
(USES OF MICRO TEACHING)
सूक्ष्म शिक्षण विधि में शिक्षण प्रक्रिया से विभिन्न पक्षों का ध्यान रखकर उनका उपयोग किया जाता है।
इस विधि में सिद्धान्त और व्यवहार में एकीकरण होता है। अंश से पूर्ण सिद्धान्त के आधार पर शिक्षण कला में दक्षता प्रदान करने के लिए यह विधि उपयोगी है। रामदेव कथूरिया (1979) ने सूक्ष्म शिक्षण के निम्नांकित उपयोग बताये हैं
(1) सूक्ष्म शिक्षण से व्यावसायिक परिपक्वता विकसित होती है।
(2) सूक्ष्म शिक्षण से छात्राध्यापकों को शिक्षण प्रक्रिया पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाती है और वे अपने "शिक्षण कार्य को भलीभाँति समझ लेते है।
(3) सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापक शिक्षण-कौशलों पर पूर्ण अधिकार (निपुणता) प्राप्त कर लेते हैं। फलस्वरूप वे कम समय में वांछित कौशल का कुशल उपयोग करने में सक्षम हो जाते हैं।
(4) सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों को सुव्यवस्थित वस्तुनिष्ठ, विशिष्ट एवं त्वरित (Immediate) पृष्ठ-पोषण प्राप्त होता है।
(5) सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण कौशलों का अभ्यास वास्तविक जटिल परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक सरल परिस्थितियों में कराया जाता है।
(6) सूक्ष्म शिक्षण में छात्राध्यापकों की व्यक्तिगत विभिन्नता पर पूर्ण ध्यान प्रदान किया जाता है।
(7) सूक्ष्म शिक्षण, छात्राध्यापकों के व्यवहार परिवर्तन में अधिक प्रभावी होता है।
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