सूक्ष्म शिक्षण एवं शिक्षण के आधारभूत कौशल।सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा।विशेषताएँ।आवश्यकता एवं महत्त्व।सिद्धान्त
सूक्ष्म शिक्षण एवं शिक्षण के आधारभूत कौशल [Micro Teaching and Basic Skill of Teaching]
हेल्लो दोस्तों आज हम बात करेंगे : सूक्ष्म शिक्षण एवं शिक्षण के आधारभूत कौशल के अंतर्गत : सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा , सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ ,सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व, सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त, सूक्ष्म शिक्षण व्यवस्था शैक्षिक प्रक्रिया के बारे में विस्तार से :👍
1 : सूक्ष्म शिक्षण की अवधारणा (CONCEPT OF MICRO TEACHING)
सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षक प्रशिक्षण की एक प्रयोगशालीय एवं वैश्लेषिक विधि है, जिसके माध्यम से छात्राध्यापकों में शिक्षण-कौशल' विकसित किये जाते हैं।
एलन (1968) ने इसकी परिभाषा निम्न प्रकार से की है, सूक्ष्म शिक्षण प्रशिक्षण से सम्बन्धित एक सम्प्रत्यय है जिसका प्रयोग सेवारत एवं सेवापूर्व (Inservice and Preservice) स्थितियों में शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों को शिक्षण के अभ्यास के लिए एक ऐसी योजना प्रस्तुत करता है जो कक्षा की सामान्य जटिलताओं को कम कर देता है और जिसमें शिक्षक बहुत बड़ी मात्रा में अपने शिक्षण व्यवहार के लिए प्रतिपुष्टि (Feedback) प्राप्त करता है।
डी. डब्ल्यू. एलन के अनुसार, सूक्ष्म शिक्षण सरलीकृत शिक्षण प्रक्रिया है जो छोटे आकार की कक्षा में कम समय में पूर्ण होती है।"
"Micro teaching is scaled down teaching encounter in class size and class time." —D. W. Allen
क्लिफ्ट एवं उनके सहयोगी के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक प्रशिक्षण की वह विधि है जो कि शिक्षण अभ्यास को किसी कौशल विशेष तक सीमित करके तथा कक्षा के आकार एवं शिक्षण अवधि को घटाकर शिक्षण को अधिक सरल एवं नियन्त्रित करती है।"
"Micro teaching is a training procedure which reduces the teaching situation to a simpler and more controlled encounter achieved by limiting the practice teaching to a specific skill and reducing time and size."
-Clift and Others
बुश के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षक प्रशिक्षण की वह प्रविधि है जिसमें शिक्षक स्पष्ट रूप से के परिभाषित, शिक्षण कौशलों का प्रयोग करते हुये, ध्यानपूर्वक पाठ तैयार करता है. नियोजित पाठों के आधार पर, पाँच से दस मिनट तक वास्तविक छात्रों के छोटे समूह के साथ अन्त क्रिया करता है, जिसके परिणामस्वरूप वीडियो टेप पर प्रेक्षण प्राप्त करने का अवसर प्राप्त होता है।"
(भारतवर्ष में सूक्ष्म शिक्षण के भारतीय मॉडल में वीडियो टेप के स्थान पर मानवीय प्रेक्षकों की संस्तुति की गयी है।)
एलन तथा रियान ने सूक्ष्म शिक्षण को निम्नांकित पाँच मूलभूत सिद्धान्तों पर आधारित बताया
(1) सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है।
(2) इस शिक्षण में कक्षा-शिक्षण की सामान्य जटिलताओं को कम कर दिया जाता
(3) एक समय में एक ही कार्य विशेष तथा एक ही कौशल पर बल दिया जाता है।
(4) अभ्यास क्रम की प्रक्रिया पर अधिक नियन्त्रण सम्भव होता है।
(5) तुरन्त पृष्ठ-पोषण (Feedback) दिया जाता है।
प्रो. बी. के. पासी के अनुसार, "सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण विधि है जिसमें छात्राध्यापक किसी एक शिक्षण कौशल का प्रयोग करते हुये थोड़ी अवधि के लिये, छोटे छात्र समूह को कोई एक सम्प्रत्यय पढ़ाता है।"
श्रीवास्तव, सिंह तथा राय (1978) के अनुसार, सूक्ष्म शब्द का एक गूदार्थ भी हो सकता है क्योंकि सूक्ष्म शिक्षण में कौशलों को छोटी-छोटी अर्थात् सूक्ष्म इकाइयों में विभाजित कर प्रत्येक में बारीकी से प्रशिक्षण दिया जाता है। अतः सूक्ष्म शब्द का प्रयोग इस संदर्भ में उचित ही है।
ग्रीफिथ्स (1973) ने अनेक परिभाषाओं का विश्लेषण करने के बाद कहा, सूक्ष्म शिक्षण को ही लचीली और अनुकूलनशील प्रक्रिया होने के कारण इसे किसी विशिष्ट एवं मर्यादित परिभाषा में बाँधना उचित नहीं होगा।"
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि, "सूक्ष्म शिक्षण एक विकासशील प्रवृत्ति है, जिसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु, पाठ्य-अवधि तथा पाठकों (छात्राध्यापक) को कम किया जाता है और छात्राध्यापक में क्रमशः शिक्षण-कौशल का विकास भलीभाँति किया जाता है।" -डॉ. कुलश्रेष्ठ, 1979
सूक्ष्म शिक्षण की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF MICRO TEACHING)
1. सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण तत्वों को सूक्ष्म स्वरूप दिया जाता
2. यह व्यक्तिशः प्रशिक्षण की विधि है।
3. इस विधि में प्रशिक्षणार्थियों को शिक्षण व्यवहार से सम्बन्धित प्रतिपुष्टि तत्काल प्राप्त हो जाती है।
4. यह ऐसा वास्तविक शिक्षण है जो केन्द्र बिन्दु प्रशिक्षणार्थियों में शिक्षण कौशल का विकास करता है।
(क) कक्षा के आकार को घटाकर छोटा कर दिया जाता है अर्थात् कक्षा में केवल 5 से 10 छात्र ही रखे जाते हैं।
(ख) पढ़ाने की अवधि को एक घण्टे या 40 मिनट से घटाकर 5 से 10 मिनट कर दिया जाता है।
(ग) विषय-वस्तु के प्रकरण का आकार छोटा कर दिया जाता है।
(घ) अनेक शिक्षण कौशलों के स्थान पर प्राय ही शिक्षण कौशल का अभ्यास किया जाता है।
2: सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व
(NEED AND IMPORTANCE OF MICRO TEACHING)
सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकता इस बात में निहित है कि यह सीमित समय व संसाधनों में शिक्षण कार्य का अनुभव देता है और एक-एक कौशल को क्रमशः सीखते हुए शिक्षण कला में दक्ष बनाता है इस शिक्षण द्वारा सबसे बड़ा लाभ यह है कि छात्रों को पढ़ाने के बाद स्वयं शीघ्र ही पर्यवेक्षकों की सलाह पर, अपने शिक्षण कार्य का मूल्यांकन करते हैं एवं सुधार करते हैं।
सूक्ष्म शिक्षण की आवश्यकतायें तथा महत्त्व निम्नांकित है-
(1) प्रभावशाली सूक्ष्म शिक्षण के लिये शिक्षक-व्यवहार के प्रारूप (Pattern) आवश्यक होते हैं।
(2) अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाने में पृष्ठ-पोषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
(3) शिक्षण एक उपचारात्मक प्रक्रिया या योजना होती है।
(4) उत्तम प्रशिक्षण देने के लिये शिक्षण-क्रियाओं का वस्तुनिष्ठ (Objective) प्रेक्षण आवश्यक है।
(5) शिक्षक में सुधार लाने के लिये समुचित अवसर दिये जाने चाहिये।
(6) व्यक्तिगत क्षमताओं का विकास करके शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत बनाया जा सकता है।
(7) सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण का एक अति लघु एवं सरलीकृत रूप होता है।
सूक्ष्म शिक्षण के सिद्धान्त (PRINCIPLES OF MICRO TEACHING)
एलन तथा रियॉन (1968) ने सूक्ष्म शिक्षण के निम्नांकित पाँच मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन किया है
(1) सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक शिक्षण है।
(2) किन्तु इस प्रकार के शिक्षण में साधारण कक्षा-शिक्षण की जटिलताओं को कम कर दिया जाता है।
(3) एक समय में किसी भी एक विशेष कार्य एवं कौशल के प्रशिक्षण पर ही जोर दिया जाता है।
(4) अभ्यास क्रम की प्रक्रिया पर अधिक नियन्त्रण रखा जाता है।
(5) परिणाम सम्बन्धी साधारण ज्ञान एवं प्रतिपुष्टि के प्रभाव की परिधि विकसित होती है।
सूक्ष्म शिक्षण व्यवस्था शैक्षिक प्रक्रिया
(MICRO TEACHING SYSTEM: AN EDUCATIONAL PROCESS)
सूक्ष्म शिक्षण के अन्तर्गत विषय-वस्तु कक्षा एवं अवधि तीनों को ही कम करके सूक्ष्म बनाया जाता है।
"It is a scaled down teaching technique, scaled down in terms of class size, lesson, length and teaching complexity."
सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया में निम्नांकित पद निहित होते हैं -
(1) शिक्षक, छात्राध्यापकों को सूक्ष्म शिक्षण के विषय में सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है। इसे 'प्रस्तावना पद' कहते हैं।
(2) शिक्षक छात्राध्यापकों को शिक्षण-कौशल' (Teaching Skill), जिसका विकास करना है, के विषय में विशद रूप से बताता है और उसके पीछे छिपे मनोवैज्ञानिक आधारों की विवेचना करता है।
(3) शिक्षक छात्राध्यापकों के समक्ष सूक्ष्म शिक्षण विधि पर आधारित 'आदर्श पाठ' प्रस्तुत करता है।
(4) शिक्षक और छात्राध्यापक मिलकर दिये गये आदर्श पाठ का विश्लेषण कर इसकी कमियों और विशेषताओं पर विचार-विमर्श करते हैं और शिक्षण-कौशल व्यवहारों का निर्धारण करते हैं।
(5) शिक्षक कक्षाध्यापकों को 'सूक्ष्म-पाठ योजना बनाने के लिए समय देता है और आवश्यकतानुसार व्यक्तिगत रूप से उनकी सहायता करता है।
(6) कक्षाध्यापक निर्देशानुसार 5 से 15 मिनट तक 'सूक्ष्म पाठ पढ़ाता है। (इस पाठ की 'रिकॉर्डिंग' (Recording) टेप रिकॉर्डर के माध्यम से की जाती है) इसे शिक्षण पद कहा जाता है।
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